पूजा के आंसू थमने का नाम नही ले रहे थे. आज उसने ईशा का मनपसंद आलू का पराठा बनाया था और उसे खाते ही ईशा ने उसे "थैंक्यू मम्मा, इतना टेस्टी पराठा बनाने के लिए" बोला था.
यूँ बात बहुत छोटी थी. वह उसकी माँ थी और उसके लिए अच्छे से अच्छा खाना बनाना उसका फ़र्ज़ था लेकिन अपनी बच्ची के मुंह से 'थैंक्यू' शब्द सुनकर उसे कितनी खुशी हुई थी केवल वही महसूस कर पा रही थी. तो क्या माँ को भी उससे यही उम्मीद थी? पर वह उनकी उम्मीद पर कहाँ खरा उतर पायी थी. सोचते हुए वह सालों पहले के अपने अतीत में जा पहुंची.
"सच आँटी मेरी बेटी तो मेरे पिताजी (ससुर) का आशीर्वाद है. इसे मैं उन्ही का दिया हुआ प्रसाद मानती हूं. यदि आज वे होते तो बहुत खुश होते." मायके आयी पूजा दो महीने की ईशा को गोदी में लिए बड़े गर्व से अपनी आंटियों को बता रही थी.
उसी दिन दोपहर को वह बेटी को लेकर सोई थी कि पास के कमरे से पापा के साथ बैठी माँ का उदास स्वर सुनाई दिया, "पूजा ने ईशा को अपने ससुर का आशीर्वाद बताया, उनकी खूब तारीफ की. अच्छा लगा, पर उसने एक बार भी मेरा नाम न लिया. जबकि सवा महीने के संवर मे मैंने ही उसके घर पर रहकर उसे और उसकी बच्ची को संभाला. माना कि ये मेरा फ़र्ज़ था लेकिन अगर वो दो शब्द मेरे लिए भी बोल देती तो मुझे कितनी खुशी होती?" लेकिन आश्चर्य...उस समय माँ की बात का मर्म समझने की बजाय वह बेतहाशा उन पर चीखने लगी थी.