रक्षिता एक संयुक्त परिवार की छोटी बहू है. परिवार का रैडीमेड कपड़ों का बड़ा व्यवसाय है, पढ़ीलिखी तो थी ही, सो शादी के बाद वह भी व्यवसाय में मदद करने लगी. जहां उस की 2 जेठानियां घर पर रहतीं, वह हर दिन तैयार हो कर दुकान जाती और बिजनैस में सहभागी होती. परंतु उस की आर्थिक स्वतंत्रता बिलकुल अपनी जेठानियों के ही स्तर की रही. वह एक कर्मचारी की ही तरह काम करती और वित्तीय मामलों में उस के सुझवों को उस के अधिकारों का अतिक्रमण माना जाता है.
रक्षिता को भी इस व्यवस्था में कोई खामी नजर नहीं आती है और घर से बाहर जाने के मिले अधिकार की खुशी में ही संतुष्ट रहती है. उस के ससुर, जेठ या उस के पति यह सोच भी नहीं सकता कि घर की औरतों को आयव्यय, बचत, हिसाब जानने की कोई जरूरत भी है. वहीं कुछ महिलाएं खुद ही यह मान कर चलती हैं कि घर के वित्तीय मामले उन के लिए नहीं हैं.
शर्माजी कोविडग्रस्त हो 75 साल की उम्र में गुजर गए. सबकुछ इतना अचानक हुआ कि उन की पत्नी जिंदगी में आए इस बदलाव से भौचक सी रह गई. आर्थिक रूप से शर्मा दंपती बेहद संपन्न थे. शर्माजी के गुजरने के बाद भी मजबूत बैंक बैलेंस, पैंशन और इंश्योरैंस की मजबूत आर्थिक सुरक्षा थी. परंतु अफसोस यह है कि शर्माजी की पत्नी अपनी आर्थिक सुदृढ़ता से पूरी तरह से अनभिज्ञ हैं.
विवाह के शुरुआती दिनों से उन्होंने कभी भी यह सीखने या जानने की कोशिश नहीं की कि घर में कितने पैसे आ रहे हैं, कहां खर्च हो रहे हैं या फिर कहां क्या बचत हो रही है. शर्माजी उन के लिए सदा एटीएम बने रहे.