लेखिका- कनुप्रिया
बिंदु के मातापिता बचपन में ही गुजर गए थे, पर मरने से पहले वे बिंदु का रिश्ता भमुआपुर के चौधरी हरिहर के बेटे बिरजू से कर गए थे.
उस समय बिंदु 2 साल की थी और बिरजू 5 साल का. बिंदु के मातापिता के मरने के बाद उसे उस के चाचा ने पालापोसा था.
बिंदु के चाचा बहुत ही नेकदिल इनसान थे. उन्होंने बिंदु को शहर में रख कर पढ़ायालिखाया था. यही वजह थी कि 17वें साल में कदम रख चुकी बिंदु 12वीं पास कर चुकी थी.
बिरजू के घर से गौने के लिए कई प्रस्ताव आए, लेकिन बिंदु के चाचा ने उन्हें साफ मना कर दिया था कि वे गौना उस के बालिग होने के बाद ही करेंगे.
उधर बिरजू भी जवान हो गया था. उस का गठीला बदन देख कर गांव की कई लड़कियां ठंडी आहें भरती थीं. पर बिरजू उन्हें घास तक नहीं डालता था.
‘‘अरे, हम पर भले ही नजर न डाल, पर शहर जा कर अपनी जोरू को तो ले आ,’’ एक दिन चमेली ने बिरजू का रास्ता रोकते हुए कहा.
‘‘ले आऊंगा. तुझे क्या? चल, हट मेरे रास्ते से.’’
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‘‘क्या तेरी औरत के संग रहने की इच्छा नहीं होती? कहीं वो तो नहीं है तू...?’’ चमेली ने एक आंख दबा कर कहा, तो उस की हमउम्र सहेलियां खिलखिला कर हंस पड़ीं.
‘‘चमेली, ज्यादा मत बन. मैं ने कह तो दिया, मुझे इस तरह की बातें पसंद नहीं हैं,’’ कहते हुए बिरजू ने आंखें तरेरीं, तो वे सब भाग गईं.
उधर बिंदु की गदराई जवानी व अदाएं देख कर स्कूल के लड़के उस के आसपास मंडराते रहते थे.