करीब 8 महीने पहले शीला बूआ का अपने भतीजे राजीव की शादी के अवसर पर सप्ताह भर के लिए कानपुर से दिल्ली आना हुआ था. उस के बाद अब वे 1 महीने के लिए अपने छोटे भाई शंकर के घर रहने आई थीं.
राजीव की बहू मानसी अपने कमरे से निकल कर जब उत्साहित अंदाज में भागती सी उन के पास आई तब उस ने जींस और टौप पहना हुआ था. बूआ के माथे में पड़े बल देख कर शंकर, उन की पत्नी सुमित्रा और राजीव तीनों समझ गए कि नई बहू का पहनावा उन्हें पसंद नहीं आया. बूआजी की नाराजगी से अनजान मानसी ने पहले उन के पैर छुए और फिर बड़े जोश के साथ गले लगते हुए बोली, ‘‘मैं ने मम्मी से आप की पसंद की चाय बनानी सीख ली है. आप के लिए चाय मैं ही बनाया करूंगी, बूआजी.’’
‘‘तुम्हारे शरीर से पसीने की बदबू आ रही है,’’ उस की बात से खुश होने के बजाय बूआ ने नाक सिकोड़ कर उसे परे कर दिया.
‘‘आप के आने से पहले मैं व्यायाम कर रही थी. जब आप की आवाज सुनी तो मुझ से रुका नहीं गया और भागती हुई मिलने चली आई. मेरे नहाते ही पसीने की बदबू गायब हो जाएगी.’’
‘‘क्या तुम अभी तक नहाई नहीं हो?’’ बूआ ने दीवार पर लगी घड़ी की तरफ देखा, जिस में 11 बज रहे थे.
‘‘आज रविवार है, बूआजी.’’
‘‘उस से क्या हुआ?’’
‘‘रविवार का मतलब है सब कुछ आराम से करने का दिन.’’
‘‘अच्छे घर की बहुओं की तरह तुम्हें रोज सूरज निकलने से पहले नहा लेना चाहिए,’’ बूआ ने तीखे स्वर में उसे डांट दिया.