केंद्र सरकार अपने ‘स्वच्छ सुर्वेक्षण’ अवाड्र्स से देश के शहरों को सफाई के लिए हर साल अवार्ड देती है और इस बार फिर इंदौर (मध्य प्रदेश) व सूरत (गुजरात) पहले दूसरे नंबर पर आए हैं. 4534 शहरों में होने वाले इस सर्वे में छोटे शहरों में पंचगनी (महाराष्ट्र) व पाटन (छत्तीसगढ़) पहले व दूसरे नंबर पर  पाए गए.

यह अवार्ड सैरीकौनी एक अच्छा प्रयास है कि शहर का एडमिनिस्ट्रेशन कुछ करे कि हर साल उस की रैंङ्क्षकग बढ़े. आम आदमी को जो लाभ इन सर्वे की रैंङ्क्षकग से मिलता है वह भगत की तीसरे नंबर की अर्थव्यवस्था बनने की रैंकिंग से कहीं ज्यादा सुखद है. लोग अपने आसपास का माहौल सही चाहते हैं न कि देश की राजधानी के राजपथ पर 20000-30000 करोड़ खर्च कर के नए भवन देखना. लोगों को असली प्राइड तब तक होता है जब पता चले कि वे देश के सब से साफ  शहर या सब से गंदे शहर में रहते हैं.

कानपुर का रैंक 4320वां है, झूंझूड का 4304, देवप्रयास का 4095, भीमताल जैसे पर्यटकों के शहर का रैंक 4077 है, शिवकाशी का रैंक 3949 है, बचाकर 3912 स्थान पर है.

पूर्वी दिल्ली शहर 34वें नंबर पर है जो थोड़ा साप्राइङ्क्षजग है. दक्षिणी दिल्ली जो जरा अमीरों की है 28वां स्थान पा सकी है. दिल्ली से सटा गुडगांव 19वें स्थान पर है. पर फरीदाबाद 36वें पर है.

इस तरह की रिपोर्ट हर शहर के एडमिनिस्ट्रेशन को चौकन्ना रखती है और यदि शहर साफ शहरों में गिना जाए तो वहां संपत्ति का दाम तो अपनेआप बढ़ जाता है. वहां नौकरी करने या शादी करने के बाद जुडऩे वालों की लाइन भी बढ़ जाती है. कोई भी न तो चाहकर गंदे शहर में नौकरी करना चाहता है और न ही वहां के लडक़े या लडक़ी से शादी करना.

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