सिल्क हमारे देश में शादियों, उत्सवों और समारोहों जैसे हर शुभ अवसर का एक अनिवार्य हिस्सा है. इसलिए सिल्क की मांग भी अधिक है. यह गौरतलब है की भारत सिल्क का सबसे बड़ा उपभोक्ता और दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है.

सिल्क की इस ज्यादा मांग ने उसकी मूल्य श्रृंखला में विकृतियों और मिलावट की घटनाओं को भी जन्म दिया है. नायलॉन, रेयान, पॉलिएस्टर आदि एक से दिखने वाले रेशों की मिलावट से बना कपड़ा शुद्ध सिल्क का बताकर बेचा जाता है जिसकी कीमत शुद्ध सिल्क की कीमत का सिर्फ 10% ही होता है. वहीं उपभोक्ताओं के लिए इन मिलावटी और शुद्ध सिल्क में फर्क पता लगाना बहुत मुश्किल है क्योंकि यह बिलकुल शुद्ध सिल्क जैसा ही दिखता है.

इसीलिए हम सभी के लिए यह जानना जरुरी है कि सिल्क की शुद्धता का परीक्षण कैसे किया जाता है. सिल्क शुद्धता परीक्षणों में से सबसे आसान लौ परीक्षण यानी Flame Test है.  इससे फाइबर शुद्ध सिल्क है या नहीं इसका पता बहुत जल्द और आसानी से लग जाता है.

इस परिक्षण में सिल्क के कपड़े के किनारे से कुछ धागे निकाल लें और उन्हें सिरों से जला दें. अलग- अलग फाइबर के धागे अलग तरह से जलते हैं. सिल्क धीरे-धीरे जलता है और एक काला अवशेष छोड़ता है, जो कि उंगलियों से आसानी से टूट जाता है और जले हुए बालों जैसी गंध देता है. जबकि कॉटन या रेयान, कागज के जलने जैसी गंध के साथ लगातार जलता रहता है और सफेद राख छोड़ता है. वहीं नायलॉन या पॉलिएस्टर की बात करें तो यह तेजी से जलता है और प्लास्टिक की तरह पिघलता है, जिससे कठोर न टूटनेवाले मोती बन जाते हैं.

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