यह सुन रूपा अवाक रह गई. बोली, ‘‘मेरे घर में ऐसा क्या है, जो देखने आएगी?’’
‘‘जो उस के घर में नहीं है. देख रूपा,
वह बहुत धूर्त, ईर्ष्यालु है... बिना स्वार्थ के वह एक कदम भी नहीं उठाती... तू उसे ज्यादा गले मत लगाना.’’
‘‘मां वह आती ही कहां है? वर्षों बाद तो मिली है.’’
‘‘यही तो चिंता है. वर्षों बाद अचानक तेरे घर क्यों आई?’’
रूपा हंसी, ‘‘ओह मां, तुम भी कुछ कम शंकालु नहीं हो... अरे, बचपन की सहेली से मिलने को मन किया होगा... क्या बिगाड़ेगी मेरा?’’
‘‘मैं यह नहीं जानती कि वह क्या करेगी पर वह कुछ भी कर सकती है. मु झे लग रहा है वह फिर आएगी... ज्यादा घुलना नहीं, जल्दी विदा कर देना... बातें भी सावधानी से करना.’’
अब रूपा भी घबराई, ‘‘ठीक है मां.’’ मां की आशंका सच हुई. एक दिन फिर आ धमकी शिखा. रूपा थोड़ी शंकित तो हुई पर उस का आना बुरा नहीं लगा. अच्छा लगने का कारण यह था कि सुजीत औफिस के काम से भुवनेश्वर गए थे और बेटा स्कूल... बहुत अकेलापन लग रहा था. उस ने शिखा का स्वागत किया. आज वह कुछ शांत सी लगी.
इधरउधर की बातों के बाद अचानक बोली, ‘‘तेरे पास तो बहुत सारा खाली समय होता है... क्या करती है तब?’’
रूपा हंसी, ‘‘तु झे लगता है खाली समय होता है पर होता है नहीं... बापबेटे दोनों की फरमाइशों के मारे मेरी नाक में दम रहता है.’’
‘‘जब सुजीत बाहर रहता है तब?’’
‘‘हां तब थोड़ा समय मिलता है. जैसे आज वे भुवनेश्वर गए हैं तो काम नहीं है. उस समय मैं किताबें पढ़ती हूं. तु झे तो पता है मु झे पढ़ने का कितना शौक है.’’