अभिनेता संजय मिश्रा के लिए ’वध’ एक ऐसे फिल्म की कहानी है,जो आज की दुनिया में उन सभी पैरेंट्स को समर्पित है, जिन्होंने अपना पूरा जीवन बच्चो के पालन –पोषण के लिए लगा दिया है,लेकिन आज वे अकेले जीने पर मजबूर है, उन्हें देखने वाला कोई नहीं,उनकी समस्याओं को सुनने वाला कोई नहीं है. ‘वध’ ऐसे ही दुखद परिस्थिति को समाप्त करने की दिशा में लिया गया कदम है, जिसे वह जायज समझता है. इसमें मुख्य चरित्र मनोहर कहानियां है, जो इस परिस्थिति से निकलने में शंभूनाथ मिश्रा को मदद करता है. इंटरव्यू के दौरान संजय कहते है कि मैं ऐसे कई अंकल आंटी से मिला हूँ, जिसने दुनिया तो बनाई थी, पर वे अब अकेले रह गए है. किसी ने सही लिखा है कि बच्चों को दीवारों पर लिखने दो, उन्हें चिल्लाने दो, शरारत करने दो ,क्योंकि एक समय आएगा जब घर खाली होगा, आप अकेले होंगे, चारों तरफ शांति होगी. हालांकि संजय मानते है कि इसे वध नाम देने की वजह किरदार की सोच है,क्योंकि वध पापियों का किया जाता है,जबकि हत्या एक बड़ी क्राइम है. उनका आगे कहना है कि अगर रावण का वध नहीं होता, तो वह कईयों की हत्या कर सकता था. इसलिए उसके वध को जायज माना गया.

रहे काम से दूर

अभिनेता संजय ने हमेशा कॉमेडी और अलग तरीके की फिल्में की है, इन्होंने अधिकतर हिन्दी फ़िल्मों तथा टेलीविज़न धारावाहिकों में अभिनय किया है. वर्ष 2015 में उन्हें आँखों देखी के लिए फ़िल्मफ़ेयर क्रिटिक अवॉर्ड फ़ॉर बेस्ट एक्टर से नवाजा गया. वे एक इमोशनल इंसान है और पिता की मृत्यु के बाद कई साल तक फ़िल्मी दुनिया से दूर रहे और दूसरों के लिए काम किया. उनका कहना है कि जिंदगी केवल खुद के लिए काम करना नहीं होता, दूसरों के लिए भी बहुत कुछ करने की जरुरत है और वह निस्वार्थ भाव से करना पड़ता है. इससे एनर्जी बढती है.

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