अस्पताल में अपने साथ बैठे बीमार के प्रति सहानुभूति अनायास ही पैदा हो जाती है और यदि उसे आर्थिक कठिनाई हो तो लोग आसानी से अपनी जेब ढीली कर देते हैं. इस मानवीयता का गलत लाभ उठाने वाले कम नहीं हैं. दिल्ली के एम्स में तो ऐसे लोगों की तादाद बहुत है, जो इस तरह के नए व अच्छे बहाने बनाते हैं कि साथ वाले इन के झांसे में आ ही जाते हैं.
ये लुटेरे बाकायदा अपनी परची बनवाते हैं. इन में महिलाएं भी होती हैं. ये चेहरे पर दर्द का नाटक दिखा सकते हैं और पैसे की कमी का रोना व अपने रिश्तेदारों का बखान कर सकते हैं, जो समय पर पहुंच नहीं पाए. ये लोग नकली मोबाइल पर नेताओं से बात करते भी नजर आते हैं और दिखाते हैं कि उधार लिया पैसा कुछ घंटों में लौटा देंगे. लेकिन ऐसे दरियादिल दूसरे बीमार व्यक्ति या उस के रिश्तेदारों से पैसा मिला नहीं कि वे गायब और किसी और कोने में शिकार ढूंढ़ने लगते हैं.
यह मानवता ही है कि लोग अपने अनजान साथी की भी सहायता करते ही हैं. यह अच्छी बात है पर इस मानवता पर तेजाब ये लुटेरे डाल रहे हैं. कानून की तो नहीं पर समाज की पकड़ इन पर होनी चाहिए कि ये मानवता को नष्ट करने की इतनी ज्यादा बेईमानी न करें कि लोग जरूरतमंद की सहायता करना ही भूल जाएं.
हमारा धर्म भी इस में कम नहीं है. हर मंदिर में बोर्ड लगे रहते हैं कि चोरों जेबकतरों से सावधान रहें. क्या भगवान या पुजारी और प्रबंधक इतनी तेज दृष्टि भी नहीं रखते कि चोर और साहूकार में फर्क कर सकें? असल में मंदिर में जहां लाइनें लगती हैं वहां चोरों और जेबकतरों के गिरोह बन जाते हैं, जो चौकीदारों के साथ मिल कर भगवानों की नाक के नीचे लूटपाट करते हैं. ये भगवान कैसे भक्तों की रक्षा कर सकते हैं, यह सवाल पूछने लायक ही नहीं, क्योंकि कुल मिला कर धर्म में सिखाया ही यह जाता है कि भक्तों को पैसा देने को तैयार करो और वह भी कपोलकल्पित कथाओं के बल पर.