आज पतिपत्नी का रिश्ता मित्रता, प्यार, सहभागिता का बन गया है, जिस में दोनों को एकदूसरे को समझाने के बजाय एकदूसरे को समझने की कोशिश करनी पड़ती है. ऐसा करने पर ही एक सुखी वैवाहिक जीवन की कल्पना की जा सकती है. उम्र के जिस पड़ाव पर पतिपत्नी शादी की दहलीज पार करते हैं वह एक अहम पड़ाव और दौर होता है. शुरू के कुछ वर्ष उन को खुद में बदलाव लाने के होते हैं. वैवाहिक संबंध की कुछ विशेषताएं निम्नलिखित हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता:
2 अलगअलग व्यक्तित्व वाले शख्स दांपत्य सूत्र में बंध जाते हैं. दोनों को अपने अतीत को भूल कर एकदूसरे में समाना होता है. कुछ छोड़ना पड़ता है कुछ अपनाना पड़ता है.
पतिपत्नी दोनों विलक्षण और अद्भुत किस्म के व्यक्तित्व होते हैं, जिन में आवश्यक बदलाव धीमी गति से आवश्यकता के अनुसार ही संभव होता है. दोनों से तीव्र गति से बदलाव की अपेक्षा करना अव्यावहारिक है.
दोनों के काम करने के तरीके और दिनचर्या भिन्न होने के कारण उन्हें नए माहौल में ऐडजस्ट करने के लिए कुछ समय देना होता है. यह ससुराल पक्ष के लोगों के लिए परीक्षा की घड़ी होती है. धैर्यपूर्वक इस कसौटी पर खरा उतरने का परिणाम यह होता है कि रिश्ते स्वाभाविक रूप से विकसित होते हैं और सभी को रिश्तों में आनंद और सुकून मिलता है.
नए दांपत्य रिश्ते में 2 ऐसे लोग बंधते हैं जो अलगअलग पारिवारिक वातावरण, संस्कारों और परंपराओं की संस्कृति में पलेबढ़े होते हैं. ऐसे में पतिपत्नी के लिए आवश्यक बदलाव को स्वीकार करना नामुमकिन नहीं होता है, मुश्किल जरूर होता है. इस बदलाव को जिम्मेदारी और सूझबूझ से अपनी शख्सीयत में लाया जाए.