शेयर बाजार में अगर लंबे समय के लिए निवेश किया जाए तो नुकसान के बजाय बढ़िया रिटर्न मिलने की संभावना अधिक होती है. अगर हिस्टोरिकल डेटा देखें तो 15 साल में नेगेटिव रिटर्न की संभावना शून्य है. कहने का मतलब यह है कि सेंसेक्स में निवेश करने वालों को 15 साल में कभी भी कैपिटल लॉस का सामना नहीं करना पड़ा है.

इस दौरान निवेशक को सालाना 14.5% का रिटर्न मिला है. किसी दिन या किसी महीने में बाजार में बड़ी गिरावट आ सकती है. तब मार्केट से शिकायतें बढ़ जाती हैं और असल बात से ध्यान भटक जाता है. यह मामला निवेशकों के व्यवहार और मनोविज्ञान से कहीं अधिक जुड़ा है. नुकसान होने पर इंसान ज्यादा अफसोस करता है.

वहीं, अगर उतना ही मुनाफा हुआ हो तो वैसी खुशी उसे नहीं होती. 'लालच' से अधिक स्ट्रॉन्ग इमोशन 'डर' है. इसलिए सफल निवेश को 'साधना' जैसा माना जा रहा है. एक फंड मैनेजर को अपने अंदर झांककर देखना चाहिए कि कहीं इनवेस्टमेंट लॉजिक के पीछे कोई इमोशन तो नहीं है. अगर वह ऐसा करता है तो उसके सामने एक नई दुनिया खुल जाती है, जिसे बिहेवेरियल फाइनेंस कहते हैं. इसमें सायकोलॉजी और फाइनेंस दोनों पहलुओं पर ध्यान दिया जाता है.

अगर आप वॉरेन बफेट, चार्ल्स मंगेर और सेथ क्लारमैन जैसे सफल फंड मैनेजरों की सिखाई गई बातों पर नजर डालें तो इनवेस्टमेंट को 'साधना' मानने वाली बात सच लगती है. इनवेस्टर्स को लिखे हालिया लेटर में क्लारमैन ने सफल निवेशक बनने के लिए मानसिक अनुशासन यानी मेंटल डिसिप्लिन की बात की है. उनके मुताबिक, एक फंड मैनेजर में कड़ी मेहनत, अनुशासन, फौलादी इरादों और संयम जैसे गुण होने चाहिए. इसके बावजूद सफलता की गारंटी नहीं है, लेकिन अगर निवेशक सही फिलॉस्फी पर चलता है तो उसके बाजार से पैसा बनाने की संभावना काफी बढ़ जाती है.

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