अपनी जिंदगी के 30-35 वसंत देखने के बाद भी हमारी बेसिक प्रौब्लम अभी तक सौल्व नहीं हो पाई है. हमारी समस्या है, नए साल पर नएनए संकल्प लेने और फिर शीघ्र ही उन्हें तोड़ डालने की. ज्यों ही नया साल आने को होता है, लोग न्यू ईयर सेलिब्रेशन की तैयारियों में डूब जाते हैं, किंतु हमें तो हमारी प्राथमिक समस्या सताने लगती है.
हम आदत से मजबूर हैं. संकल्प लेना हमारा जनून है तो उन्हें तोड़ना हमारी आदत या मजबूरी है. संकल्प लिए बिना हम नहीं रह सकते. भला नए साल का स्वागत बिना रिजोल्यूशन के कैसे संपन्न हो सकता है? हम अल्पमात्रा में ही सही, लेकिन अंगरेजी पढ़ेलिखे हैं. 10वीं की परीक्षा, अंगरेजी की असफलता के कारण, 10 बार के सतत प्रयासों के बाद पास की है. अंगरेजी का महत्त्व हम से ज्यादा कौन समझेगा भला?
जब हम ने जवानी की दहलीज पर पहला कदम रखा, तब हम ने जमाने के साथ कदमताल मिलाते हुए, नए साल के स्वागत के लिए अपने पारिवारिक पैटर्न को ‘आउटडेटेड’ समझ कर त्याग दिया. हमारे दादा, पिताश्री तो जमाने के हिसाब से निश्चित रूप से बैकवर्ड रहे होंगे. तभी तो वे फाइवस्टार कल्चर के अनुरूप मदिरा से थिरकते, लड़खड़ाते कदमों से कभी भी ‘न्यू ईयर सेलिब्रेशन’ के महत्त्व को नहीं समझ पाए. वे लोग तो ब्रह्ममुहूर्त में स्नानादि, पूजाअर्चना, देव आराधना, दानदक्षिणा या गरीबों की सहायता कर के नए साल की शुरुआत करते थे. हम ने ‘सैल्फ डिपैंडेंट’ होते ही ऐसे दकियानूसी खयालातों को तुरंत छोड़ने में ही अपनी समझदारी समझी. अंगरेजी कल्चर के चार्म से हम अपनेआप को कैसे दूर रख सकते थे?