आमतौर पर शहरों की बनावट ऐसी होती है कि बरसात के बाद अगर बाढ़ आ जाए तो भी घरों में पानी कम घुसता है. मगर इस बार केरल में जिस तरह बाढ़ आई और जिस तरह लाखों की गिनती में घरों की पहली मंजिलें डूब गईं, बहुत कम होता है. इस बाढ़ ने अरबों का नुकसान तो किया ही, लाखों की यादों और धरोहरों को भी पानी में बहा दिया.
अच्छे खातेपीते लोगों को न केवल रिलीफ कैंपों में हफ्ते गुजारने पड़े, उन के पीछे उन का सामान भी भीगता रहा और उस पर मिट्टी जमती रही. पानी उतरने के बाद जो मुसीबत अब केरल की औरतें झेल रही हैं वह है हर चीज को साफ करना और अंदर तक घुस गए पानी और मिट्टी को निकालना. साथ ही घरों की नींवें कमजोर न हो गई हों, इस का भी खयाल रखना. केरल में लोगों के घरों में फर्नीचर, टीवी, फ्रिज, माइक्रोवेव आम बातें थीं, क्योंकि वहां खाड़ी के देशों में नौकरी की वजह से पैसा बहुत है. केरलवासी वैसे भी मेहनती हैं और शिक्षित भी. उन के संपन्न घरों पर अचानक आई बाढ़ ने धावा बोल डाला और शहर के शहर पानी में डूब गए.
घरों की साफसफाई का चैलेंज इसलिए बड़ा है, क्योंकि इस तरह के फ्लड रोज नहीं आते और लोगों को मालूम ही नहीं होता कि क्या करें कैसे करें. मीडिया बताने की कोशिश कर रहा है कि साफसफाई कैसे करें. पर घर की हर चीज को निकालना, सुखाना और साफ करना एक आफत का काम है और आसान नहीं है. लोगों की यादों के अलबम, फोटो, पत्र, किताबें, उपहार, सजावटी चीजें भी बाढ़ में नष्ट हो गई हैं और उन का गम पैसे से ज्यादा होता है. प्रौपर्टी के कागजात, टैक्सों की फाइलें, लाइसैंस, आईडी पू्रफ जैसे डौक्यूमैंटों का गल जाना तक नई आफत है, क्योंकि डुप्लिकेट तो डुप्लिकेट ही होता है और उसे पाने के लिए भी भारी मशक्कत करनी पड़ेगी. ऐसा नहीं लगता कि नौकरशाही सिर्फ बाढ़ की वजह से उदार हो जाएगी और हरेक का काम बिना पैसे लिए रातदिन लग कर पूरा कर देगी.