सर्वश्रेष्ठ संस्मरण
बात तब की है जब मैं संस्कृत में एम.ए. कर रही थी. अपनी यूनिवर्सिटी में नेतागीरी करने का शौक लग जाने के कारण मैं पूरा वर्ष ठीक से पढ़ाई नहीं कर पाई. अंत में जब परीक्षा की घोषणा हुई तो मुझे लगा कि इस वर्ष मेरा पास होना बहुत मुश्किल है. मैं अपने विषय की विभागाध्यक्षा के पास परीक्षा में आने वाले प्रश्नों की जानकारी लेने गई, तो उन्होंने मेरी सहायता करने से इनकार कर दिया और मुझे खूब डांटफटकार लगाई.
अपनी बेइज्जती का बदला लेने के लिए मैं ने अपनी क्लास की सभी लड़कियों को भड़का कर उन के कार्यों में बाधाएं खड़ी करनी शुरू कर दीं.
एक दिन विभागाध्यक्षा मेरे पास आईं और मुझे एक लिफाफा देते हुए बोलीं, ‘‘बेटी, ये लो अपने विषय के महत्त्वपूर्ण प्रश्न. इन को पढ़ने से तुम पास अवश्य हो जाओगी. परंतु सोचो, जब तुम्हें अपने विषय का ज्ञान ही नहीं होगा तो डिगरी लेने से क्या फायदा? नकल से पास की गई परीक्षा से भविष्य में तुम्हें हर जगह शर्मिंदा होना पडे़गा.’’
उन की ये सीख भरी बातें मेरे दिल को छू गईं
-ज्ञानेश्वरी शुक्ला
मेरे दोनों देवर अलगअलग शहरों में रहते हैं. मेरे पति और बड़े देवर सरकारी नौकरी में अच्छे पद पर कार्यरत हैं, जबकि छोटे देवर एक प्राइवेट कंपनी में साधारण पद पर नौकरी करते हैं. तीनों परिवारों का एकदूसरे के यहां आनाजाना लगा रहता है.
मेरे यहां जब बड़े देवर का परिवार आता तो मैं उन की खूब खातिरदारी करती. फल, मीठा, नमकीन, आइसक्रीम और न जाने क्याक्या उन्हें परोसती. मुझे लगता कि इन लोगों को इन सब चीजों की आदत होगी. पर जब छोटे देवर का परिवार आता तो उन के लिए साधारण भोजन बना देती.