अब यह गुजरे जमाने की बात हो गई है जब किट्टी पार्टियां केवल अमीर घरों की महिलाओं का शौक होती थीं. आजकल महानगरों में ही नहीं वरन छोटेछोटे शहरों में भी किट्टी पार्टियां आयोजित की जाती हैं और मध्यवर्गीय परिवारों की गृहिणियां भी पूरे जोशखरोश के साथ इन पार्टियों में शिरकत कर के गौरवान्वित महसूस करती हैं.
अमूमन इन पार्टियों का समय लगभग 11 से 1 बजे के बीच रखा जाता है जब पतिदेव औफिस और बालगोपाल स्कूल जा चुके होते हैं. उस समय घर पर गृहस्वामिनी का निर्विघ्न एवं एकछत्र राज होता है. हर छोटेबड़े शहर में चाहे कोई महल्ला हो, सोसायटी हो, मल्टी स्टोरी बिल्डिंग हो, इन पार्टियों का दौर किसी न किसी रूप में चलता रहा है.
इन पार्टियों की खासीयत यह होती है कि टाइमपास के साथसाथ ये मनोरंजन का भी अच्छा जरीया होती हैं जहां, गृहिणियां गप्पें लड़ाने के साथसाथ हंसीठिठोली भी करती हैं और एकदूसरे के कपड़ों व साजशृंगार का बेहद बारीकी से निरीक्षण भी करती हैं. किट्टी पार्टियों की मैंबरानों में सब से महत्त्वपूर्ण बात यह होती है कि सब से सुंदर एवं परफैक्ट दिखने की गलाकाट होड़ चलती रहती है, जिस का असर बेचारे मियांजी की जेब को सहना पड़ता है.
ये भी पढ़ें- Short Story: बड़ी लकीर छोटी लकीर
मैचिंग पर्स, मैचिंग ज्वैलरी और सैंडल की जरूरत तो हर किट्टी में लाजिम है. ऐतराज जताने की हिम्मत बेचारे पति में कहां होती है. यदि उस ने भूल से भी श्रीमतीजी से यह पूछने की गुस्ताखी कर दी कि क्यों हर महीने फालतू खर्चा करती हो, तो अनेक तर्क प्रस्तुत कर दिए जाते हैं जैसे मिसेज चोपड़ा तो हर किट्टी में अलगअलग डायमंड और प्लैटिनम के गहने पहन कर आती हैं. मैं तो किफायत में आर्टिफिशियल ज्वैलरी से ही काम चला लेती हूं. यदि मैं सुंदर दिखती हूं, अच्छा पहनती हूं तो सोसायटी में तुम्हारी ही इज्जत बढ़ती है. इन तर्कों के आगे बहस करने का जोखिम पतिदेव उठा नहीं पाते और बात को वहीं खत्म करने में बुद्धिमानी समझते हैं.