यह सच है कि हमारी श्रीमतीजी अमीर परिवार से हैं, इसलिए हमें अकसर उन की वे बातें भी सुननी पड़ती हैं, जो हमें अच्छी नहीं लगती हैं.
बड़े जोड़तोड़ के बाद बैंक से लोन ले कर हम ने 2 कमरों का मकान शहर के बाहर लिया, वह भी इसलिए कि वह सस्ता था वरना पूरी जिंदगी किराए के मकान में ही कट जाती. यहां रहने आए तो गृहप्रवेश के समय हमारी एकमात्र सासूजी भी आ टपकीं. उन की सलाह मान कर आसपास के परिवारों को भी परिचय के लिए बुला लिया. अब परिचय यों तो होता नहीं. अत: उन के भोजन की व्यवस्था भी की गई. सासूजी की 1 पाई भी नहीं लगी और हमारे हजारों स्वाहा हो गए.
जितने भी परिवार आए थे उन से श्रीमतीजी अपने पति या अपने परिवार की बातें कम कर रही थीं, अपने मायके के मीठे गीत सुनासुना कर स्वयं को हलका फील कर रही थीं. और कोई उपाय भी तो न था. अत: हम चुपचाप सुनते रहे.
श्रीमतीजी किसी को बता रही थीं, ‘‘शादी में मम्मीजी ने पूरे 5 तोले का हार दिया था. 2 तोले की सोने की चूडि़यां, 3 तोले का मंगलसूत्र और भी न जाने क्याक्या...’’
वे गहनों से लदीफंदी पूरी सोने की दुकान लग रही थीं. हम क्या कहते... हमें तो 1 अंगूठी भी नहीं दी गई थी. लेकिन हम किस से शिकायत करते? फिर दामाद की क्या हिम्मत जो सास के सामने अपनी श्रीमतीजी की शिकायत कर सके. हम तो इस 2 कमरों के मकान में खुश थे. सोच रहे थे जीवन कट जाएगा. लेकिन उस रात जब पार्टी समाप्त हुई और हम थकहार कर बिस्तर पर पहुंचे तो श्रीमतीजी ने कहा, ‘‘मुझे आज बड़ी शर्म आ रही थी...’’