मां के होते हुए भी बचपन से उस के प्यार को तरसते हुए कुशल का मन कड़वाहट से भर गया था. पर आशा के मिलने के बाद प्रेम और स्नेह के एहसास से उस का दिल भर उठा था. लेकिन परिस्थितियां हर बार उसे आशा के पास आने के बजाय दूर ढकेल रही थीं.
त्योहार पर घर गया तो ताऊजी ने फिर से अपनी जिद दोहरा दी. वे चाहते थे कि मैं शादी कर लूं. जबकि मुझे शादी के नाम से चिढ़ होने लगती थी. हालांकि ताईजी ने मुझे सदा पराया ही समझा, पर ताईजी ने
मेरे लिए अपनी ममता की धारा कभी सूखने नहीं दी. मेरी मां मेरी कड़वाहट की एक बड़ी वजह थी, जिस ने मेरे
भीतर की सभी कोमल भावनाओं को जला दिया था, परंतु ताऊजी कभी भी मेरी मां के खिलाफ कुछ सुनना पसंद नहीं करते थे. वे उस के लिए सुरक्षाकवच जैसे थे. एक बार जब मैं मां के खिलाफ बोला था तो उन्होंने मुझ पर हाथ उठा दिया था.
छुट्टी के बाद मैं वापस चला आया. अस्पताल में आते ही वार्ड कर्मचारी ने एक महिला से मिलाया, जो कुछ महीने पहले गुजर गई एक अनाथ बच्ची के बारे में पूछताछ कर रही थी. मेरी नजर उस महिला पर टिक गई. 3 साल की उस बच्ची, जो मेरी मरीज थी, से उस औरत की सूरत काफी मिलतीजुलती थी.
जब मैं ने उस महिला से बात की तो पता चला, वह उस बच्ची की मां है. उस की बात सुन मैं हैरान रह गया कि इतनी संभ्रांत महिला और उस की संतान लावारिस मर गई? वह महिला अनाथालय से मेरा पता ले कर आई थी.