समय कभी रुकता नहीं है. यह बात दूसरी है कि घड़ी में सैल ही चुक जाए या चाबी न भरी हो. सच यही है कि एक बार चल पड़ी तो चलती रहती है. सरकारी नौकरी भी तो घड़ी की ही तरह है.
संगीता को कौन नहीं जानता. आसपड़ोस में उस की ही तो चर्चा है. कैसे वह घर और नौकरी दोनों को एकसाथ चला रही है? जब सर्दी के दिनों में लोग रजाई से बाहर झांकना पसंद नहीं करते तब तक वह बच्चों का नाश्ता बना कर, स्कूल के लिए तैयार हो जाती है. सुबह 7 बजे उसे स्कूल पहुंचना होता है. घर से 5 मील दूरी पर स्कूल है. वह अपनी स्कूटी में शाम को ही पैट्रोल डलवा लाती है. 12 बजे स्कूल से आती है, तब तक बच्चों के घर लौटने का समय हो जाता है. वह आते ही किचन में लंच की तैयारी में लग जाती है. सुभाष को भी समय पर जाना है. उस की फैक्टरी की नौकरी है, पारी बदलती रहती है. कभी तो उस का काम बढ़ जाता है, कभी घट जाता है, पर वह उफ नहीं करती. हमेशा मुसकरा कर बाहर खड़ी कभी बच्चों का इंतजार करती है तो कभी पति का.
पर उस दिन तो खड़ी ही रह गई.
स्कूल में सब को पता था कि उस का रिजल्ट क्योें अच्छा रहता है. सब जगह उस की तारीफ हो रही थी, पर न जाने क्यों? कौन सी हवा बही जिस ने उस की शांत जिंदगी में हलचल पैदा कर दी. उसे नहीं पता लगा कि अचानक क्यों ?उस का तबादला, घर से 50 मील दूर गांव कासिम पुरा में हो गया.