श्रेयस तलपड़े द्वारा निर्मित व उनके अभिनय से सजी 2014 की मराठी भाषा की फिल्म ‘‘पोस्टर ब्वायज’’ का श्रेयस तलपड़े बतौर निर्देशक व अभिनेता हिंदी रीमेक ‘‘पोस्टर ब्वायज’’ लेकर आए हैं, जो कि दिशा हीन पटकथा पर बनी अस्सी के दशक के पुराने चुटकुलों से भरपूर अति बोरियत वाली फिल्म है.
फिल्म की कहानी हरियाणा के एक गांव की है. सरकार की गलती के चलते इस गांव के तीन पुरुषों स्कूल शिक्षक विनय शर्मा (बाबी देओल), रिकवरी एजेंट कम गली का गुंडा अर्जुन सिंह (श्रेयष तलपड़े) और पूर्व सैन्य अधिकारी जागवार चौधरी (सनी देओल) की तस्वीरें नसबंदी से जुड़े एक पोस्टर पर छप जाती हैं, जिस पर लिखा हुआ है कि हमने नसबंदी करवा ली.
इससे इन तीनों की जिंदगी में परेशानियों का दौर शुरू हो जाता है. गांव के लोग इनकी मर्दांनगी पर सवाल उठाने लगते हैं. जागवार चौधरी अपनी पत्नी सुनीता (सोनाली कुलकर्णी) के सहयोग से अपनी बहन की शादी तय करने में लगे हुए हैं. पर इस पोस्टर के बाद उनकी बहन की शादी होना मुश्किल हो जाता है. जबकि विनय शर्मा का हर दिन पत्नी से झगड़ा होने लगता है. वह अपना घर छोड़कर मायके जाने की बात करती है. जबकि अर्जुन सिंह की खुद की शादी में समस्या आ जाती है. तब यह तीनों सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू कर देते हैं.
मराठी फिल्म की पटकथा का हिंदी में रूपांतरण करने व उसे हरियाणा में स्थापित करते करते पटकथा लेखक इस तरह की गलतियां कर बैठे हैं कि पूरी फिल्म ही दिशाहीन हो गई है. नसबंदी के पोस्टर पर अपनी तस्वीर देखकर पुरुष को जो शर्मिंदगी होनी चाहिए और उससे जो हास्य उभरना चाहिए, वह कहीं उभरकर नहीं आता. कमजोर प्लाट व पटकथा के चलते एक हास्य फिल्म बनते बनते रह गयी. फिल्म में सारे जोक्स व चुटकुले 80 के दशक के हैं, जिन्हे सुनकर हंसी नहीं आती. सनी देओल की पुरानी फिल्मों के कुछ संवाद उठाकर इस फिल्म में ठूंसे गए हैं. फिल्म का संगीत भी कमजोर है.