दीवाली खुशियों का त्योहार है. दीवाली पर सब एकदूसरे को गिफ्ट और मिठाइयां दे कर खुशियां मनाते हैं. लेकिन आधुनिक परिवेश में धन की अधिकता के चलते लोगों ने खुशियों के इस त्योहार में कैक्टस बोने शुरू कर दिए हैं. अंधकार में दीपक जला कर रोशनी की ओर बढ़ने के बजाय कुछ स्त्रीपुरुष जुए और शराब के नशे के अंधेरे रास्ते पर चलते हुए दीवाली पर अपने खुशियों भरे जीवन में कटुता घोल रहे हैं. दीवाली पर जुआ खेलने की परंपरा किसी अंधविश्वास से शुरू हुई थी. आधुनिक परिवेश में धन की अधिकता, भौतिक साधनों की सुविधा के कारण जुआ घरघर में खेला जाने लगा है. दीवाली पर जुए की अधिकता देखी जाती है. अब फाइवस्टार होटलों और बड़ेबड़े फार्महाउसों में भी जुए के आयोजन होने लगे हैं. कार्ड पार्टियों के नाम पर हजारोंलाखों नहीं, करोड़ों रुपयों का जुआ खेला जाने लगा है. दीवाली पर शराब में डूब कर जुआ खेला जाता है.
पहले जुए और शराब का चलन पुरुषों तक ही सीमित था, लेकिन अब स्त्रियां भी इस में शामिल होने लगी हैं. यही नहीं शराब की पार्टियों में भी स्त्रियां बढ़चढ़ कर भाग ले रही हैं. दीवाली पर जुए में जीतने वाला व्यक्ति वर्ष भर जीतता रहता है. इस अंधविश्वास के चलते सभी वर्ग के लोग जुआ खेलते हैं. स्त्रियां भी जुआ खेलने में किसी से पीछे नहीं रहती हैं. धनी वर्ग की ही नहीं मध्यवर्ग की स्त्रियां भी जुए में बढ़चढ़ कर भाग लेती हैं. धनी वर्ग के स्त्रीपुरुषों में तो जुआ स्टेटस सिंबल बन चुका है. दीवाली की रात को ही नहीं, दीवाली के कुछ दिन आगेपीछे भी खूब जुआ खेला जाता है. कैसिनो, फार्महाउसों और बड़ेबड़े होटलों में हौल बुक करा कर जुए के आयोजन किए जाते हैं. इन आयोजनों में बड़ेबड़े दांव लगाए जाते हैं. क्व20 से 30 हजार हार जाने वाले की ओर कोई देखता भी नहीं. क्व5-10 लाख हारने वाले का ही नाम सब की जबान पर होता है.