आधुनिकीकरण के दौर में पार्टियां मेलमिलाप का ट्रैंड भी हैं और फैशन भी. अकसर ऐसी पार्टियों का भी हिस्सा बनना पड़ता है, जहां इक्कादुक्का चेहरों के अलावा सारे अजनबी ही नजर आते हैं. इस स्थिति में पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं खुद को ज्यादा असहज महसूस करने लगती हैं और पार्टी फोबिया का शिकार हो जाती हैं. इस फोबिया का शिकार न बनें, बल्कि प्रैजेंटेबल दिखने की कोशिश करें और आत्मविश्वास बनाए रखें, फिर लोग स्वयं आ कर आप से पहचान बढ़ाने की कोशिश करेंगे.
आत्मविश्वास बनाए रखें
जब से पुनीता का फोन आया था, मनोरमा बहुत उत्साहित थी. इतने बरसों बाद पुनीता ने न जाने कहां से उस का नंबर ढूंढ़ कर उस से कौंटैक्ट किया था. दोनों स्कूल और कालेज में साथसाथ पढ़ी थीं. फिर विवाह हो जाने के बाद अलगअलग शहरों में चले जाने के कारण उन का संपर्क टूट गया था.
मनोरमा अकसर उसे याद करती रहती और अपने पति को उस के और अपने किस्से सुनाती थी कि कैसे वे दोनों हमेशा मस्ती और शरारतों के मूड में रहती थीं.
पुनीता इन दिनों इसी शहर में पति का ट्रांसफर हो जाने के कारण आ गई थी और पति की तरक्की हो जाने की खुशी में उस ने अपने घर पर एक पार्टी रखी थी. मनोरमा तो उस के शहर में आ जाने की बात से ही खुश हो गई थी और पार्टी के आमंत्रण की बात से तो वह और प्रफुल्लित हो गई थी. मिलने का इस से अच्छा बहाना और क्या हो सकता था.
दिल्ली के एक पौश इलाके में रहने वाले एक उच्च पदाधिकारी के घर पार्टी हो और लोगों की भीड़ न हो, ऐसा तो मुमकिन नहीं. पुनीता उस से आ कर गले मिली, कुछ देर सालोें न मिलने के गिलेशिकवे हुए और फिर वह अन्य मेहमानों का स्वागत करने में व्यस्त हो गई.