अजीत की बड़ी बहन मीना का पत्र आया था. उसे खोल कर पढ़ने के बाद अजीत बोला, ‘‘आ गया खर्चा.’’
‘‘अरे, पत्र किस का है पहले यह तो बताओ?’’ पत्नी वीना तनिक रोष से बोली, ‘‘सीधी तरह तो बताते नहीं, बस पहेलियां बुझाने लगते हो.’’
‘‘मीना दीदी का है. बेटे की सगाई कर रही हैं. अगले महीने की 15 तारीख की शादी है. बंबई में ही कर रही हैं.’’
वीना खुश हो गई, ‘‘यह तो बहुत अच्छा हुआ. बहुत दिनों से मेरा बंबई जाने का मन हो रहा था. बच्चे भी शिकायत करते रहते हैं कि कभी समुद्र नहीं देखा. और हां, लड़की कैसी है, कुछ लिखा है?’’
अजीत उस की बात पर ध्यान दिए बिना हिसाब लगाने लगा, हम दो, हमारे दो यानी 3 पूरी टिकट और 1 आधा, ऊपर से बहन को शादी में देने के लिए उपहार आदि.
‘‘भई, एक सप्ताह की छुट्टी तो कम से कम जरूर लेना. पहली बार बंबई जा रहे हैं. मैं ने कभी फिल्म की शूटिंग नहीं देखी. जीजाजी कह रहे थे कि फिल्म वालों से उन की खासी जानपहचान है. वे कुछ न कुछ प्रबंध करवा ही देंगे. वहां आरगंडी की साडि़यां बहुत अच्छी मिलती हैं और सस्ती भी होती है. दीदी की साडि़यां देखी हैं, कितनी सुंदर होती हैं. बच्चों के कपड़े भी वहां सस्ते और सुंदर मिलते हैं,’’ वीना धाराप्रवाह बोले जा रही थी.
अजीत झल्ला गया, ‘‘दो मिनट चुप भी रहोगी या नहीं. तुम तो बंबई का नाम सुनते ही ऐसे योजना बनाने लगी हो मानो किसी बड़े व्यापारी की पत्नी हो. मुझे समझ में नहीं आ रहा कि इतना खर्चा करेंगे कैसे. तुम ने कुछ रुपए बचा कर रखे हुए हैं क्या अपने पास?’’