कोरोना संकट में घरेलू झगड़े काफी बढ़ गए. पूजापाठ के हिमायती मंदिरों को खोल कर औरतों को भगवान की शरण में जा कर मुसीबत से बचने का उपदेश देने लगे. कोरोना संकट में भगवान के दरवाजे सब से पहले बंद होने से लोगों का भरोसा खत्म हो रहा था. ऐसे में चढ़ावा कारोबार बंद न हो जाए, इस के लिए धर्मस्थल खोलने की मांग हर धर्म में बढ़ने लगी.
जनता को यह पता चल चुका है कि धर्मस्थलों में जा कर कोरोना से बचाव नहीं हो सकता इस कारण अभी भी इन जगहों में लोगों की भीड़ नहीं दिख रही है. अब दान और चढ़ावा दोनों के लिए औनलाइन सुविधा भी पाखंडियों ने शुरू कर दी है. इस के बाद भी औरतों का भरोसा बढ़ नहीं रहा है. जिन मंदिरों में दर्शन करने वालों से ले कर पुजारी तक भय के साए में जी रहे हों वे भला दूसरों की दिक्कतों को कैसे दूर कर सकते हैं.
कोरोना संकट के दौरान तमाम मौलिक अधिकार खत्म से हो गए थे. लौकडाउन में पूजा करने के अधिकार को ले कर मंदिर और चर्च जैसे पूजास्थलों को खोलने की मांग अमेरिका से ले कर भारत तक एकसाथ उठने लगी, जबकि कोरोना संकट के दौर में केवल मंदिरों के खुलने पर रोक थी अपने घरों में पूजापाठ करने पर कोई रोक नहीं थी.
पूजास्थल खोलने की मांग के पीछे की वजह केवल इतनी थी कि मंदिरों के पुजारियों को चंदा नहीं मिल रहा था. मंदिरों के दानपात्रों में चढ़ावा नहीं जा रहा था. मंदिरों में दानचढ़ावा देने वालों में सब से बड़ी संख्या महिलाओं की ही रहती है. ऐसे में मंदिरों के लिए यह जरूरी हो गया था कि महिलाओं को मंदिरों तक लाने और पूजापाठ करने के लिए मंदिरों को खोला जाए.