सौम्या बाहर बालकनी में खड़ी आसमान की तरफ देख रही थी. आज सुबह से ही नीले आसमान को कालेकाले शोख बादलों ने अपने आगोश में ले रखा था. बारिश की नन्हीनन्ही बूंदों के बाद अब मोटीमोटी बूंदें गिरने लगीं थीं. सावन के महीने की यही खासियत होती है. पूरी प्रकृति बारिश में नहा कर खिल उठती है. सौम्या का मनमयूर भी नाचने को विकल था. इस सुहाने मौसम में वह भी पति की बांहों में सिमट जाना चाहती थी. मगर क्या करती उस का पति अनुराग तो अपने कमरे में कंप्यूटर से चिपका बैठा था.
सौम्या दो बार उस के पास जा कर उसे उठाने की कोशिश कर चुकी थी. एक बार फिर वह अनुराग के कमरे में दाखिल होती हुई बोली,‘‘ प्लीज, चलो न. बाहर बारिश बंद हो जाएगी और तुम काम ही करते रह जाओगे.‘‘
‘‘बोला न सौम्या, मुझे जरूरी काम है. तुम चाहती क्या हो ? बाहर जा कर क्या करूंगा मैं ? तुम भूल क्यों जाती हो कि अब हम प्रौढ़ हो चुके हैं. तुम्हारी नवयुवतियों वाली हरकतें अच्छी नहीं लगतीं.‘‘
सौम्या ने तुनकते हुए कहा,‘‘ मैं कौन सा तुम से रेन डांस करने को कह रही हूं? बस बाहर बरामदे में बैठ कर सुहाने मौसम का आनंद लेने के लिए ही तो कह रही हूं. गरमागरम चाय और पकौड़े खाते हुए जीवन के खट्टेमीठे पल ही तो याद करने को कह रही हूं.‘‘
‘‘देखो सौम्या, मेरे पास इतना फालतू वक्त नहीं कि बाहर बैठ कर प्रकृति निहारूं और खट्टेमीठे पल याद करूं. मुझे चैन से काम करने दो. तुम अपने लिए कोई सहेली या रिश्तेदार ढूंढ़ लो, जो हरदम तुम्हारा मन लगाए रखे और हर काम में साथ दे,‘‘ कह कर अनुराग फिर से काम में लग गया और मुंह बनाती हुई सौम्या किचन में घुस गई.