रात के 2 बजे डोरबैल बजी तो मैं ने घबरा कर पति को जगाया. देखा तो दरवाजे पर सामने वाले फ्लैट में रहने वाले शर्माजी का किशोरवय बेटा नितिन खड़ा था. उस की सूजी और आंसू टपकाती आंखें देख कर हम दोनों डर गए. पूछने पर उस ने बताया कि आज दिन में कालेज की वैल्डिंग वर्कशौप में जौब बनाते समय उस ने शील्ड का इस्तेमाल नहीं किया था. फलस्वरूप उस की आंखों में बहुत रड़कन हो रही है.‘‘मम्मीपापा कहां हैं?’’ मैं ने पूछा.‘‘पापा टूर पर गए हैं. 2 दिन बाद आएंगे और मम्मी सत्संग की सेवा करने बाबाजी के डेरे गई हुई हैं,’’ नितिन किसी तरह से बता पाया.वैल्डिंग से मुझे अपने बचपन का किस्सा याद आया जब एक बार मेरे साथ भी ऐसी ही घटना घटी थी. तब मां ने चायपत्ती उबाल कर मेरी आंखों पर पट्टी बांधी थी. मैं ने भी नितिन के साथ वही किया और थोड़ी देर बाद उसे आराम मिला और वह सो गया.मैं उस के सिरहाने बैठी उस की मम्मी के धार्मिक पागलपन को कोस रही थी. यहां बच्चा परेशान है और वहां वे सत्संग की सेवा कर के पुण्य कमाने का झूठा वहम पाल रही हैं.
यह सिर्फ आज की घटना नहीं है. मैं ने इस से पहले भी कई बार नितिन और उस के पापा को अकेले रसोई में जूझते देखा है, लेकिन उस की मम्मी को इस से कोई फर्क नहीं पड़ता. बाबाजी के डेरे में उन की सेवा निरंतर जारी रहती है.धार्मिक अंधभक्ति का यह अकेला उदाहरण नहीं है. कुछ अरसा पहले की ही बात है. मेरे पास महल्ले की कुछ महिलाएं आईं.‘‘हम ने एक सत्संग मंडली बनाई है, जो लोगों के बुलावे पर उन के घर जा कर भजनकीर्तन का काम करेगी. कम से कम चढ़ावा क्व2 सौ होगा और शेष यजमान की इच्छाशक्ति पर निर्भर रहेगा. कीर्तन में जो भी दान या चढ़ावा आएगा वह कालोनी के मंदिर में दिया जाएगा. तो क्यों न शुरुआत आप के घर से करें?’’ मंडली की अध्यक्षा ने पूरा विवरण देते हुए कहा.कहना न होगा कि मेरे इनकार करने पर मुझे नास्तिक और अधर्मी जैसे विशेषणों से नवाजा गया.कुछ इसी तरह आजकल धार्मिक किट्टी पार्टियों का आयोजन भी आम बात हो गई है. इस में किट्टी की सदस्याएं मिल कर हर महीने किसी एक महिला के घर भजनकीर्तन या फिर किसी कथा का पाठ करती हैं और अंत में प्रसाद बांटने के साथ अपनी पार्टी का समापन करती हैं.