सीमा के अत्यधिक गुस्से की जड़ में उस के अपने अतीत का अनुभव था. विनोद नाम के एक युवक से उस का प्रेमसंबंध 3 वर्षों तक चला था. कभी उस का साथ न छोड़ने का दम भरने वाला उस का वह प्रेमी अचानक हवाई जहाज में बैठ कर विदेश रवाना हो गया था. उस धोखेबाज, लालची व अत्यधिक महत्त्वाकांक्षी इंसान को विदेश भेजने का खर्चा उस के भावी ससुर ने उठाया था. यह दुखद घटना सीमा की जिंदगी में 2 वर्ष पूर्व घटी थी. वह अब 28 वर्ष की हो चली थी. विनोद की बेवफाई ने उस के दिल को गहरा आघात पहुंचाया था. अपने सभी हितैषियों के लाख समझाने के बावजूद उस ने कभी शादी न करने का फैसला अब तक नहीं बदला था. समीर की राजेशजी की लड़की देखने जाने वाली हरकत ने उस के अपने दिल का घाव हरा कर दिया था. वंदना को वह अपनी छोटी बहन मानती थी. अपनी तरह उसे भी धोखे का शिकार होते देख उसे समीर पर बहुत गुस्सा आ रहा था. कुछ देर बाद वंदना के आंसू थम गए. फिर उदास खामोशी ने उसे अपनी गिरफ्त में ले लिया था. भोजनावकाश तक इस उदासी की जगह क्रोध व कड़वाहट ने ले ली थी. यह देख कर उस के तीनों सहयोगियों को काफी आश्चर्य हुआ.
‘‘मैं समीर के सामने रोनेगिड़गिड़ाने वाली नहीं,’’ वंदना ने तीखे स्वर में सब से कहा, ‘‘वह मुझ से कटना चाहता है, तो शौक से कटे. ऐसे धोखेबाज के गले मैं जबरदस्ती पड़ भी गई, तो कभी सुखी नहीं रह पाऊंगी. वह समझता क्या है खुद को?’’ वंदना के बदले मूड के कारण उसे समझानेबुझाने के बजाय उस के तीनोें सहयोगियों ने समीर को पीठ पीछे खरीखोटी सुनाने का कार्य ज्यादा उत्साह से किया. भोजनावकाश की समाप्ति से कुछ पहले वंदना ने सीमा को अकेले में ले जा कर उस से प्रार्थना की, ‘‘सीमा दीदी, मेरा एक काम करा दो.’’