तफतीश पूरी होने तक के लिए सुखलाल के कमरे को सील कर दारोगा राम सिंह वहां से चला गया.
दोपहर को अचानक सुधीर लौट आया. सलोनी भाग कर उस से लिपट गई और पूछा, ‘‘कहां चले गए थे आप अचानक आधी रात से?’’
‘‘दुकान के लिए निकलना है मुझे...’’ सुधीर ने बेरुखी से उसे खुद से अलग करते हुए कहा.
सलोनी उसे देखती रह गई. उस ने फिर बातों का सिलसिला शुरू करना चाहा, ‘‘अरे, पुलिस आई थी यहां. सुखलाल की मौत हो गई न आज...’’
‘‘हां, मुझे पता चला है पड़ोसियों से इस बारे में,’’ सुधीर ने उसे बीच में ही टोक दिया, ‘‘तुम को पैसे की तंगी हो जाएगी, फिर अब तो...’’
सलोनी उस की बात सुन कर सन्न रह गई. सुधीर तीखे लहजे में आगे बोला, ‘‘मेरे कहने का मतलब है कि हम को अब किराया नहीं मिल सकेगा न.’’
इतना कह कर सुधीर अपना थैला ले कर दुकान के लिए निकल गया. सलोनी उस के कहे का मतलब अच्छी तरह समझ रही थी. वह बच्चों को अपनी बांहों में भर कर उदास मन से फिर वहीं बैठ गई.
कुछ दिन ऐसे ही बीतते रहे. उधर सुखलाल की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ चुकी थी. दारोगा राम सिंह उसे पढ़ने में लगा था. सुखलाल की मौत की वजह पेट में लोहे की छड़ धंसना बताई गई थी. बाकी शरीर पर लगी चोटें जानलेवा नहीं थीं. इस के अलावा एक बात जिस ने राम सिंह को चौंका दिया, वह थी सुखलाल के शरीर में मिली जहरीली चीज की मात्रा. जहरीली चीज भी क्या थी, घरों में मच्छर भगाने के लिए काम में आने वाला लिक्विडेटर उस की शराब में मिलाया गया था.