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लेखक-अरुण अर्णव खरे

आप ने कहा आप का कोई अपना ऐडमिट नहीं है, फिर यह बच्चा कौन है आप का?’ शेखर आश्चर्य से आनंदिता की ओर देखते हुए बोला.

‘वह दीदी बोलता है, तो भाई समझ लीजिए.’‘प्लीज, पहेलियां मत बुझाइए.’

‘मैं सच में ज्यादा नहीं जानती उस के बारे में. हमारी सर्वेंट के भाई का लड़का है. 5 साल का है. जन्म से ही थैलेसीमिया से पीडि़त है. पर आप यहां कैसे?’‘मैं...’ शेखर उत्तर देते हुए अचकचा गया लेकिन तुरंत ही संभलते हुए बोला, ‘मैं भी ब्लड डोनेट करने आया हूं, मेरे दोस्त को जरूरत है.’‘आप बहुत अच्छे हैं. बेहतरीन खिलाड़ी के साथसाथ एक नेकदिल इंसान भी.’

आनंदिता चली गई, जिंदगी का एक नया फलसफा सिखा कर. उस दिन ब्लड डोनेट कर शेखर ने स्वयं को एक अच्छा काम दूसरों के लिए करने पर जलते हुए दीए के प्रकाश सा आलोकित महसूस किया. इस के बाद तो शेखर अपनी हर धड़कन में आनंदिता की उपस्थिति अनुभव करने लगा. धीरेधीरे दोनों एकदूसरे के निकट आने लगे, एकदूसरे के बारे में दोनों ही बहुतकुछ जान गए. शेखर के पिता नरसिंहपुर में डैंटल सर्जन हैं जबकि आनंदिता के मातापिता नहीं थे. जब वह 2 साल की थी, तभी उस के मातापिता एक नाव दुर्घटना में बेतवा नदी में बह गए थे. उसे बचा लिया गया था. तभी से वह अपने मामा के यहां रह रही है. उन्होंने उसे बेटी से बढ़ कर पाला है. आनंदिता नाम भी उन्होंने ही दिया है.

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समय के साथ शेखर और आनंदिता नजदीक आते गए. बैडमिंटन ने भी इस में अहम रोल अदा किया. पहले साल यूनिवर्सिटी बैडमिंटन के सिंगल्स में उपविजेता रहने के बाद शेखर अगले वर्ष चैंपियन बन गया. आनंदिता भी ज्यादा पीछे नहीं रही. वह उस वर्ष की उपविजेता बन कर लौटी. शेखर के टिप्स और कोर्ट में उस की उपस्थिति हमेशा प्रेरणादायी सिद्ध होती. प्रारंभिक आसक्ति ने प्रेम का स्वरूप कब ले लिया, दोनों को पता ही नहीं चला. एकदो हफ्ते तक जब मिलना नहीं होता, तो मन की बेचैनी दोनों के रिश्तों को परिभाषित करती प्रतीत होती. यह प्यार दोनों ही अपने दिलों में अधिक समय तक दबा कर नहीं रख सके. दोनों को ही एकदूसरे का साथ हमेशा सुखकर लगता था. उन्हें एहसास होने लगा था कि वे दोनों एकदूसरे के बिना अधूरे हैं. उन्होंने एक दिन सदा साथ देने का वादा एकदूसरे से कर डाला. इस के बाद शेखर आनंदिता के घर भी आनेजाने लगा. मामामामी को भी वह पसंद था. शेखर ने अपनी मां को भी आनंदिता के बारे में बता दिया था. सबकुछ मनमुताबिक और सुगमता से हो रहा था. बस, इंतजार था तो पढ़ाई पूरी कर एक अच्छी सी नौकरी का.

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