नवीन की मीठी बातें और मोहित की प्यारी बातें भी मेरा मन न बहला सकीं. नवीन का सारा प्रयास व्यर्थ गया और मोहित भी मुझे उदासीन पा कर अपने में सिमट गया. मैं ने अनेक प्रयास किए कि मोहित को अपने वक्ष से लगा कर दिल का बोझ हलका कर लूं, पर सफल न हो सकी.
तभी अपनी कोख में पलते अंश का मु झे एहसास हुआ. मैं समझ गई कि यह अंश उस बेवफा चंदन का है. लेकिन भोलेभाले नवीन को मैं कैसे बताती कि शादी से पहले ही मैं गर्भवती हो चुकी हूं.
कभीकभी जी होता, आत्महत्या कर लूं या कहीं चली जाऊं पर नवीन का निश्छल प्यार, मातापिता की इज्जत, सबकुछ सामने आ कर मेरे पांव जकड़ लेते.
फिर धीरेधीरे सबकुछ सामान्य होता गया. मोहित बीच में जब भी छात्रावास से घर आता, मु झ से खिंचा रहता. मैं लाख प्रयास करती कि वह मेरे पास आए, तब भी शांत स्वभाव का मोहित मेरे पास ज्यादा देर न टिकता.
तेज प्रसवपीड़ा के बीच एक रात मैं ने एक स्वस्थ पुत्र को जन्म दिया. नवीन फूले न समाए. अम्माबाबूजी को तो मानो बरसों की संजोई दौलत हाथ लग गई हो. पर मेरा मन खुश नहीं था. चंदन के बेटे को जन्म देने के बाद मैं स्वयं की नजरों से गिर गई थी.
शीलू के होने के बाद मोहित कुछकुछ मु झ से खुलने लगा था. दोनों में 7 वर्ष का अंतर था. मोहित एवं शीलू की खूब पटती थी. मेरे ही कहने पर नवीन ने उसे भी छात्रावास में डाल दिया था.
समय धीरेधीरे सरकता गया. मैं और नवीन पूरे घर में 2 प्राणी रह गए. 2 वर्ष पूर्व अम्मा का देहांत हो गया. बाबूजी तो पहले ही गुजर चुके थे. लाख कहने पर भी अम्मा हमारे साथ रहने नहीं आईं.