एक हफ्ते बाद मालती जब वापस घर लौटी तो सुबह की ट्रेन लेट हो कर दिन में पहुंची. स्टेशन से औटो कर के घर पहुंची. एक चाबी उस के पास थी पर्स में. अंदर आ कर सामान वहीं नीचे रख कर वह सोफे पर थोड़ा सुस्ताने बैठी. उस ने सोचा, चाय बनाएगी पहले अपने लिए, फिर फ्रैश होगी. सिर दर्द कर रहा था सफर की थकावट से. एक सरसरी नजर घर पर डाली उस ने पर सफाई का नामोनिशान नजर नहीं आ रहा था. उस के पैरों के पास कालीन पर दालभुजिया बिखरी पड़ी थी. झाड़ू तक नहीं लगी थी घर में लगता है उस के जाने के बाद.
वह बुदबुदाती हुई रसोई की तरफ बढ़ी ही थी कि तभी उस के मोबाइल की घंटी बज उठी. अजय के दोस्त का फोन था, ‘‘हैलो बेटा,’’ मालती ने फोन रिसीव किया. दूसरी तरफ से जो उसे सुनाई दिया उसे सुन कर वह धम्म से सोफे पर गिर पड़ी. अजय के दोस्त ने उसे हौस्पिटल का नाम बता कर जल्द आने को कहा. अजय की बाइक को किसी गाड़ी ने पीछे से टक्कर मार दी थी.
आननफानन मालती ज्यों की त्यों हालत में हौस्पिटल के लिए निकल पड़ी. गेट पर ही उसे अजय का दोस्त यश मिल गया था. दोनों कालेज के गहरे दोस्त थे. अजय को आईसीयू में रखा गया था. उस के हाथपैरों में गहरी चोटें आई थीं. पर उस की हालत खतरे से बाहर थी. मालती ने अपनी रुलाई दबा कर बेटे की तरफ देखा. खून से अजय के कपड़े सने थे और न जाने कितनी पट्टियां उस के शरीर पर बंधी थीं.