वही जया आज शिव की प्रिया बनने को आतुर थी. उम्र के इस पड़ाव पर शिव के प्रति इतनी आसक्ति समय और समाज के आईने में निंदा का ही विषय होगा, इस सचाई से जया अनजान न थी. वह किसे बताए कि अब तक के जीवन में प्यार उस के लिए मृगतृष्णा ही बना रहा.
चाह की धुरी पर प्यार को तलाशती, रचती, खोती वह धरती बनी घूमती ही रही. सपनों से भरे दिन और चाहत से भरी रातों की बात उस की जबान पर आना भी कितनी लज्जाजनक बात होगी. पटना में शिव से इसी तरह क्या वह मिल सकेगी, पता नहीं किनकिन रुसवाइयों का सामना करना पड़ेगा, यह सोच कर जया विह्वल हो उठी.
उधर शिव की बेटी पिया भी अपने पापा में आए बदलाव को महसूस कर रही थी.
मम्मी की यादों में खो कर रह जाने वाले पापा को कौन सी जादुई छड़ी मिल गई है जिस के स्पर्श से वे इतने तरोताजा हो गए हैं कि अपनी उम्र को पीछे ही दहलीजों पर भगाए जा रहे हैं. कहीं यह जया आंटी की संगति का असर तो नहीं है. सुंदरता और सौम्यता के साथ कितनी प्रतिभाशाली है वह. किसी भी टौपिक पर ऐसे व्याख्यान देगी कि मन बंध कर रह जाता है.
पापा के साथ हम सभी को देख कर कमल की तरह ही वह खिल जाती है. यश के यहां जाने पर डिनर कर के ही आने देती है. हालांकि, उन की ममता में मम्मी का दुलार उभर आता है. पापा तो उन्हें देखते ही खुशी के मारे चहकने लगते हैं. अब तो वे आंटी के साथ जा कर ग्रौसरी वगैरह ही नहीं बल्कि फारमर्स मार्केट से सब्जीफल भी खरीद लाते हैं. लाइब्रेरी जा कर अपनी पसंद की किताबें ले आते हैं. जया आंटी को मां बना लेने की बात मजाक में ही उस के पति समीर का कहना उसे सुख की अनुभूतियों से भर गया था. काश, ऐसा हो सकता. पर यश क्यों मानने लगा. जाति से कहां वे ब्राह्मण और कहां वे बनिया, सोच कर पिया का मन छोटा हो गया. फिर भी वह यश से बात करेगी, देखें वह कहता क्या है.