‘क्यादिया है आप ने मुझे सिवा नफरत, घुटन, दर्द और तनहाई के? और हां, याद आया, एक बेनाम, थोपा हुआ रिश्ता भी तो दिया है आप ने. वह शख्स मेरा पिता नहीं, पर आप कहती हैं, उसे पिता कहूं...’’
आज पलक के सीने में भरा गुस्सा जैसे लावा बन कर फूट रहा था और मेघा चुपचाप बेटी का यह रौद्र रूप देख रही थी. उस की बातें मेघा के सीने में नश्तर की तरह चुभ रही थीं.
‘‘मेरी सहेलियां मु?ा पर हंसती हैं. हमेशा यही पूछती हैं, तुम्हारी मां ने अपने से
10-12 साल छोटे देवर से शादी कैसे कर ली? तुम्हें अजीब नहीं लगता? मैं चुप रह जाती हूं. क्या कहूं उन्हें? कैसा लगा था मु?ो, जिस शख्स को बचपन से चाचा कहती आई थी, वही अचानक मेरा बाप बन गया. मेरी मां का पति बन गया. लगता है जैसे रिश्ते भी बाजार में बिकने लगे हैं...’’ पलक गुस्से से बोले जा रही थी.
‘‘पलक, तमीज से बात करो, बहुत सुन लिया मैं ने,’’ मेघा ने अपने कान बंद करते
हुए कहा.
पर पलक पूरी जिरह के मूड में थी. बोली, ‘‘क्या सुना है आप ने? आप को तो लोगों की व्यंग्य भरी हंसी, उन के ताने कभी सुनाई ही नहीं देते... न ही अपनी बेटी के आंसू दिखते हैं. आप ने अपनी आंखें, अपने कान सब कुछ बंद कर रखा है. शर्म नहीं आई थी, आप को उस देवर से शादी करते, जिसे कभी हाथ पकड़ कर सड़क पार करना सिखाया था... जूतों के तसमे बांधने सिखाए थे? यह भी नहीं सोचा कि लोग
क्या कहेंगे?’’