परंतु फिर भी अकसर मां न बन पाने की कसक सुमित्रा के मन में उठ जाया करती थी. उन की शादी के 12 वर्ष पूरे हो चुके थे, और अब तो वे मां बनने की उम्मीद भी छोड़ बैठी थीं.
मां बनने के लिए वे डाक्टरों के साथ मौलवी, पंडित, गंडातावीज, मंदिरमसजिद हर जगह चक्कर काटतेकाटते निराश हो चुकी थीं. वे आन्या को पा कर अपने गम को अब काफी हद तक भूल बैठी थीं.
परंतु कुछ दिनों से उन्हें चक्कर और मितली की शिकायत रहने लगी थी. एक दिन शची ही उन्हें जबरदस्ती डाक्टर के पास ले गई थी. वे मां बनने वाली हैं, यह जान कर वे खुशी के मारे फूली नहीं समा रही थीं.शची ने भाभी की सेवा में रातदिन एक कर दिया था. उन्हें बिस्तर से जमीन पर पैर भी नहीं रखने दिया था. वह घड़ी भी जल्द ही आ गई थी, जब सुमित्रा प्यारे से बेटे की मां बन गई थीं.
सुमित्रा की देखभाल के लिए उन की अम्मा आ गई थीं. ‘श्रीकांत, तुम्हें बहुत ही खुश होना चाहिए. बेटा तो ब्लैंक चैक की तरह ही होता है. इस की शादी में मनचाही रकम भर के चैक कैश कर लेना. अम्मा की बातें सुन सुमित्रा की आंखें चमक उठी थीं. वे बातबात पर बेटे को ब्लैंक चैक कह कर पुकारतीं और घमंड में रहने लगी थीं.
समय को तो पंख लगे ही होते हैं. अर्णव भी स्कूल जाने लगा था. आन्या 5वीं क्लास में आ गई थी. वह हर बार अपनी कक्षा में प्रथम आती. कभी स्पोर्ट्स में तो कभी डिबेट में मैडल ले कर आने लगी थी.