कुहराभरीशाम के 6 बजे ही अंधेरा गहरा गया था. रसिका औफिस से थकी हुई घर में घुसी ही थी कि उस की छोटीछोटी दोनों बेटियां भागती हुई मम्मा... मम्मा कहती उस से लिपट गईं. छोटी काव्या सुबक रही थी.
‘‘क्या हुआ?’’
‘‘मम्मा, यहां सब लोग मुझे बेचारी कहते हैं. आज नानी के पास एक आंटी आई थीं. वे मुझे प्यार करती जा रही थीं और रोरो कर कह रही थीं कि हायहाय बिन बाप की बेटियों का कौन अपने लड़के से ब्याह करेगा.
‘‘मम्मा, मेरे पापा तो हैं. वे ऐसे क्यों कह रही थीं?’’
8 साल की नन्ही काव्या के प्रश्न पर रसिका समझ नहीं पा रही थी कि इस मासूम को कैसे समझाए. फिर उसे प्यार से गले से लगाते हुए बोली, ‘‘इन बातों को मत सुना करो. तुम तो मेरी राजकुमारी हो,’’ और फिर पर्स से चौकलेट निकाल कर उस की हथेली पर रख दी. वह खुश हो कर उछलती हुई चली गईर्.
मान्या 10 साल की थी. वह कुछकुछ समझने लगी थी कि अब पापा से उन का रिश्ता खत्म हो गया है, इसलिए घर या बाहर कोई भी बेचारी या उस की मम्मा के लिए बुरा बोलता तो वह उस से लड़ने को तैयार हो जाती थी.
इस कारण सब उस की शिकायत करते, ‘‘रसिका, अपनी बेटी को कुछ अदबकायदा सिखाओ. सब से लड़ने पर आमादा हो जाती है.’’
रसिका अकसर मान्या को समझाती, ‘‘बेटी, इन लोगों से बेकार में क्यों बहस करती हो... तुम वहां से हट जाया करो.’’
मगर उस का रोज किसी न किसी से पंगा हो ही जाता. कभी घर में तो कभी स्कूल में.