ऐसा लगता था कि वह मुझे ही आदेश दे रही हो, अप्रत्यक्ष रूप से. बेहद चिढ़ होती है मुझे जब पत्नी पति को सीख दे. यही गलती मेरी मां ने कर के पिताजी को जिद्दी और असंतोषी बना दिया था, घर में अशांति की जड़ है पत्नी का स्वयं को ज्यादा समझना. और अब यही काम मेरी पत्नी कर रही थी. मेरी यह चिढ़ इतनी बढ़ गई थी कि अब प्रतीति की हर बात पर मैं बोल पड़ता. प्रतीति कहती, आओ कुक्कू, दूध पीओ. इधर आओ, ड्रैस बदल दूं, कापी निकालो, होमवर्क करना है, आदि.
मैं झल्ला पड़ता, ‘दिमाग नहीं है, बेवकूफ कहीं की. दिख नहीं रहा वह खेल रही है मेरे साथ, अभी कोई होमवर्क नहीं.’
‘दूध तो पीने दो?’
‘क्यों? तुम कहोगी तो हुक्म बजाना ही पड़ेगा? कोई जबरदस्ती है क्या? नहीं पीएगी अभी दूध, उस की जब मरजी होगी तभी पीएगी.’
उदासी और आश्चर्य से भर उठती प्रतीति. कहती, ‘4 साल की बच्ची की कभी दूध पीने की मरजी होगी भी.’
मैं बोलता, ‘नहीं होगी तो नहीं पीएगी, तुम बीच में मत बोलो.’
प्रतीति मारे हताशा के झल्ला पड़ती, ‘बीच में तो तुम पड़ रहे हो. मुझे समझने दो न उस की जरूरतों को.’
‘कोई जरूरत नहीं है तीसरे को बीच में बोलने की, जब मैं अपनी बेटी के साथ हूं, समझीं.’
प्रतीति अवाक् हो कर मेरा मुंह ताकती और मैं झल्ला कर उसे और नीचा दिखाने की, उस पर गुस्सा उतारने की कोशिश करता ताकि वह मेरी ओर देखती न रहे. उस का मेरी ओर इस तरह एकटक देखना मेरे गलत होने का एहसास दिलाता था और मुझे मेरा गलत साबित होना कतई पसंद नहीं था. मैं ने कमर कस ली कि उसे किसी भी कीमत पर इतना नहीं बढ़ने दूंगा कि वह मुझे समझाना शुरू करे.