गर्भ में मुन्ना के आते ही अवध खुशी से झूम उठा. सासससुर, देवरननद ने रमा की बलैया ली. देखने वाले दंग. इतने वर्षों पश्चात घर में पहला बच्चा. रमा को सभी हथेली पर रखते. ‘बहू यह न करो, वह न करो,’ सासुमां लाड़ लगातीं.
‘लो बहू तुम्हारे लिए,’ ससुर का हाथ फल, मेवों अन्य पौष्टिक पदार्थों से भरा रहता.
और अवध... वह बावला रमा को पलभर के लिए भी आंखों से ओझल नहीं होने देना चाहता था.
दफ्तर से बारबार फोन करता. रोज बालों के लिए गजरा, उपहार लाता. गोलमटोल शिशुओं की तसवीरों से कमरा जगमगा उठा.
मां व भाई रमा को लाने गयेए. सासससुर ने हाथ जोड़ लिए. बेटी का सुख, मानसम्मान देख मां व भाई गदगद हो उठे.
मां व भाई चाहते थे कि जच्चगी मायके में हो. वहीं सास, ससुर, पति पलभर के लिए बहू को आंखों से ओझल नहीं होने देना चाहते थे.
रमा दोनों पक्षों के दांवपेंच पर मुसकरा उठती.
रमा ने स्वस्थ सुंदर बेटे को जन्म दिया. बड़ी धूमधाम से जन्मोत्सव मनाया गया.
मां बन कर रमा निहाल हो उठी. जब देखो मुन्ने को छाती से चिपकाए रहती.
घरभर का खिलौना मुन्ना अपने बालसुलभ अदाओं से सब का मन मोह लेता.
‘रमा, बड़ा हो कर मुन्ना मेरी तरह इंजीनियर बनेगा,’ अवध की आंखें चमकने लगतीं.
‘नहीं, मैं इसे डाक्टरी पढ़ाऊंगी. लोगों की सेवा करेगा,’ रमा हंस पड़ती.
‘न डाक्टर न इंजीनियर, यह मेरी तरह बैरिस्टर बनेगा,’ दादाजी कब पीछे रहने वाले थे.
‘कहीं नाना जैसा व्यापारी बना तो...’ नानी बीच में टपक पड़तीं.
सभी होहो कर हंसने लगते. हर्षोल्लास से लबालब थे मायके और ससुराल. किस की नजर लग गई.