प्रिया को ऐसा लगने लगा था कि वह औरत नहीं रह गई है, एक घड़ी बन गई है. हर वक्त घड़ी की सूई की तरह टिकटिक चलने वाली औरत. लेकिन इस जीवन का चुनाव भी तो उस ने खुद ही किया था.