केशव बाबू सठिया गए हैं. क्या सचमुच...वे तो अभी पचास के भी नहीं हुए, फिर भी उन की बीवी ऐसा क्यों कहती है कि वे सठिया गए हैं. उन्होंने तो ऐसा कोई कार्य नहीं किया. बस, बीवी की बात का हलका सा विरोध किया था. सच तो यह है कि वे जीवनभर अपनी पत्नी का विरोध नहीं कर पाए. उस के खिलाफ कभी कुछ कह नहीं पाए और बीवी अपनी मनमानी करती रही. दरअसल, उन की बीवी नीता उन पत्नियों में से थी जो धार्मिक होती हैं. रातदिन पूजापाठ में व्यस्त रहती हैं, पति को सबकुछ मानती हैं, परंतु पति का कहना कभी नहीं मानतीं. ऐसी पत्नियां मनमाने ढंग से अपने पतियों से हर काम करवा लेती हैं.
केशव बाबू उन व्यक्तियों में से थे जो हर बात को सरल और सहज तरीके से लेते हैं. किसी बात का पुरजोर तरीके से विरोध नहीं कर पाते. कई बार वे दूसरों के जोर देने पर गलत बात को भी सही मान लेते हैं. वे बावजह और बेवजह दोनों परिस्थितियों में झगड़ों से बचते रहते हैं. उन की इसी कमजोरी का फायदा उठा कर नीता हमेशा उन के ऊपर हावी रहती है. आज भी कोई बहुत बड़ी बात नहीं हुई थी. बेटे विप्लव की पढ़ाई और भविष्य को ले कर पतिपत्नी के बीच चर्चा हो रही थी. उन का बेटा एमसीए कर के घर में बैठा हुआ था. 3 साल हो गए थे. अभी तक उस का कहीं प्लेसमैंट नहीं हुआ था. दरअसल, केशव बाबू उस के एमसीए करने के पक्ष में नहीं थे. वह पढ़ाई में बहुत साधारण था. बीसीए के लिए भी कई लाख रुपए दे कर मैनेजमैंट कोटे से उस का ऐडमिशन करवाया था. इस के पक्ष में भी वे नहीं थे क्योंकि वे जानते थे कि बीसीए करने के बाद भी वह अच्छी पोजीशन नहीं ला पाएगा. इस स्थिति में उस का कैंपस सेलैक्शन असंभव था और हुआ भी यही, बीसीए में उस के बहुत कम मार्क्स आए थे. फिर भी जिद कर के उस ने एमसीए में ऐडमिशन ले लिया था. इस पूरे मामले में मांबेटे एकसाथ थे और केशव बाबू अकेले.