दोनों कार में बैठ कर मेरठ चल पड़े. रास्ते भर भरत उस की गोद में बैठ कर भांतिभांति के प्रश्न पूछता रहा.
वर्षा मायके पहुंच देर तक मां, भाभी के गले से लिपटी रोती रही. भाभी बारबार पूछती रहीं, ‘‘ठीक तो हो, दीदी? सुधीर ने आदित्य का गम भुला दिया या नहीं? सुधीर का व्यवहार तो ठीक है न?’’
वर्षा के मन में अपने लव का गम समाया हुआ था. वह क्या उत्तर देती, जैसेतैसे चाय के घूंट गले से नीचे उतारती रही.
फिर भाभी खुद ही उसे लव के कमरे में ले गईं. नीचे जगह कम होने के कारण लव छत पर बने कमरे में रहता था.
मूंज की ढीली चारपाई पर सिकुड़ी हुई मैली दरी पर अपाहिज बना पड़ा था लव. पहली नजर में वर्षा उसे पहचान नहीं पाई, फिर लिपट कर रोने लगी, ‘‘यह क्या दशा हो गई लव की?’’
लव काला, सूखा, कंकाल जैसा लग रहा था, वह भी मां को कठिनाई से पहचान पाया. फिर आश्चर्य से वर्षा की कीमती साड़ी व आभूषणों को देखता रह गया.
‘‘तू ठीक तो है न, लव?’’ वर्षा ने स्नेह से उस के सिर पर हाथ फिराया, पर लव को उस से बात करते संकोच हो रहा था. वह नए वस्त्र व जूतेमोजे पहने, गोलमटोल भरत को भी घूर रहा था.
‘‘मां, यह कौन है?’’ भरत ने लव को देख कर नाकभौं सिकोड़ते हुए पूछा.
वर्षा कहना चाहती थी कि लव तुम्हारा भाई है, पर यह सोच कर शब्द उस के होंठों तक आतेआते रह गए, क्या भरत लव को भाई के रूप में स्वीकार कर पाएगा? नहीं, फिर लव को भाई बता कर उस के बालमन पर ठेस पहुंचाने से क्या लाभ?