‘‘साहिल,सुमित, सौरभ और रूपम चारों एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में ऊंचे ओहदों पर कार्यरत थे और कंपनी में महत्त्वपूर्ण ब्रैंड्स को हैंडल कर रहे थे. चारों में अच्छी दोस्ती थी. कंपनी मार्केटिंग व सेल्स से संबंधित अपने कर्मियों को इन्सैंटिव ट्रिप के नाम पर वर्ल्ड टूर पर भेजती थी और इस तरह कंपनी में कार्यरत कर्मचारी विदेशों के कई देशों में भ्रमण कर चुके थे.
इस बार भी इन्सैंटिव ट्रिप पर जाने की खबर गरम थी. औफिस में खलबली मची हुई थी. बीवीबच्चों से अलग, परिवार की चिंता से दूर, दोस्तों सहकर्मियों के साथ विदेश भ्रमण का कुछ अलग ही मजा होता है, जिस का लुत्फ हरकोई उठाना चाहता था.
सभी को उत्सुकता थी कि इस बार कहां जाना फाइनल होता है. रूपम को तो जरूर ही जाना पड़ता था क्योंकि अकसर पूरे ट्रिप के प्रबंधन का कार्यभार उस के कंधों पर आ पड़ता था. एक दिन चारों दोस्त औफिस के बाद इसी ऊहापोह व उत्सुकता भरे वार्त्तालाप में मशगूल थे कि बहुत देर से चुप साहिल बोल पड़ा, ‘‘यार मैं तो शायद इस बार नहीं जा पाऊंगा...’’
‘‘क्यों?’’ तीनों दोस्त एकसाथ चौंके.
‘‘क्योंकि वर्तिका का कहना है कि बहुत समय से हम साथ में कहीं नहीं गए... उस की छुट्टियां बहुत मुश्किल से मंजूर हुईं हैं... दोनों बच्चों को छोड़ कर इस बार उस के साथ जाना पड़ेगा... इसलिए दोनों मम्मियों को बुलाया है.’’
‘‘लेकिन दोनों की मम्मियों को क्यों? एक से काम नहीं चल रहा था?’’ सुमित ठहाका मारते हुए बोला.
‘‘नहीं... उस ने अपनी मम्मी को फोन किया और मैं ने अपनी मम्मी को... और दोनों आने को तैयार हो गईं,’’ साहिल कुढ़ कर बोला.