घर पहुंचे निविदा को 2-3 दिन ही हुए थे कि एक दिन शाम को बिना किसी पूर्व सूचना के मालिनी उस के घर पहुंच गई.
‘‘कौन हो तुम?’’ एक अजनबी लड़की को दरवाजे पर बैग और अटैची के साथ खड़े देख कर मालिनी के पापा ने पूछा.
‘‘नमस्ते अंकल... नमस्ते आंटी... मैं मालिनी हूं... निविदा की बैस्ट फ्रैंड और उस की रूममेट.’’
इसी बीच निविदा बाहर आ गई. मालिनी को देख कर बुरी तरह चौंक गई, ‘‘मालिनी तू?’’
‘‘तू मुझ से बोल कर आई थी कि मम्मीपापा के साथ साउथ घूमने जाना है पर मैं समझ गई थी तू झूठ बोल रही है. इसलिए आ गई,’’ मालिनी बेबाकी से बोली.
उस की बोलचाल, चालढाल, उस के व्यक्तित्व से लग रहा था जैसे घर में तूफान आ गया है. उस की हरकतें देख कर निविदा व उस की मम्मी सुलेखा अपनेआप में सिमट रही थीं और निविदा के पापा उस संस्कारहीन लड़की को आश्चर्य से त्योरियां चढ़ाए देख रहे थे.
‘‘मालिनी तू क्यों... मेरा मतलब तू कैसे आ गई?’’ सकपकाई सी निविदा बोली.
‘‘अरे, ऐसे क्यों घबरा रही है... तेरे साथ छुट्टियां बिताने आई हूं...’’ वह उस की पीठ पर हाथ मारती हुई बोली, ‘‘चल, मेरा सामान अंदर रख और बाथरूम स्लीपर ले कर आ... आंटीजी, कुछ खानेपीने का इंतजाम कर दीजिए. बहुत भूख लगी है.’’
सुलेखा किचन में घुस गईं. निविदा उस का सामान अंदर रख बाथरूम स्लीपर उठा लाई. मालिनी ने आराम से जूते खोल स्लीपर पहन कहा, ‘‘जा मेरे जूते भी कमरे में रख. मेरी अटैची से तौलिया निकाल लाना.’’ निविदा के तौलिया लाने पर मालिनी वाशरूम में घुस गई.