कुणाल उसे डाक्टर के पास ले गया. डाक्टर ने सुमित्रा की जांच की तो कुणाल से बोला, ‘‘आप की मां को ‘अलजाइमर्स’ की बीमारी है. जिस तरह बुढ़ापे में शरीर अशक्त हो जाता है उसी तरह दिमाग की कोशिकाएं भी कमजोर हो जाती हैं. यह बीमारी लाइलाज है पर जान को खतरा नहीं है. बस, जरा एहतियात बरतना पड़ेगा.’’
‘जाने कौन सी मरी बीमारी है जिस का आज तक नाम भी न सुना,’ सुमित्रा ने चिढ़ कर सोचा.
अब उस के बाहर आनेजाने पर भी प्रतिबंध लग गया.
सुमित्रा अब दिनभर अपने कमरे में बैठी रहती है. किसी को याद आ गया तो उस का खाना और नाश्ता उस के कमरे में ले आता है. अकसर ऐसा होता है कि नौकरचाकर अपने काम में फंसे रहते हैं और उस के बारे में भूल जाते हैं. और तो और, अब तो यह हाल है कि सुमित्रा स्वयं भूल जाती है कि उस ने दिन का खाना खाया कि नहीं. अकसर ऐसा होता है कि उस के पास तिपाई पर चाय की प्याली रखी रहती है और वह पीना भूल जाती है.
यह मुझे दिन पर दिन क्या होता जा रहा है? वह मन ही मन घबराती है. दिमाग पर एक धुंध सी छाई रहती है. जब धुंध कभी छंटती है तो उसे एकएक बात याद आती है.
उसे हठात याद आया कि एक बार ज्योति ने टमाटर का सूप बनाया था और उसे भी थोड़ा पीने को दिया. उसे उस का स्वाद बहुत अच्छा लगा. ‘अरे बहू, थोड़ा और सूप मिलेगा क्या?’ उस ने पुकार कर कहा.