‘‘लड़की पसंद आई बेटा?’’ जया ने मौका पा कर बेटे से पूछा.
‘‘हां मां, पहले मुझे लगा था न जाने कैसी होगी, फोटो तो लोग एडिट कर लेते हैं, मगर ये वाकई में फोटो से भी ज्यादा सुंदर हैं,’’ आदित्य
ने कहा.
‘‘तब ठीक है. हम शादी की तारीख वगैरह तय कर लेते हैं. अगर तुम्हें उस से अकेले में कुछ बात करनी है तो बोलो?’’ जया ने पूछा.
आदित्य झेंप गया. वह लड़कियों से ज्यादा घुलतामिलता नहीं था. इंजीनियरिंग कालेज में भी उस के गिनती के 2 फ्रैंड थे. अब एक मल्टी नैशनल कंपनी में काम कर रहा है, मगर महिला कर्मचारियों से दूरी ही बना कर रखता है.
तभी बैठक में रितु के पिता ने प्रवेश किया. बोले, ‘‘आप लोगों की हमारी बेटी के विषय में जो भी राय है बता दीजिए. मैं ने भी रितु की मां से कह दिया है कि दिखनादिखाना तो हो ही गया है. रितु की राय भी पूछ लो. नया जमाना है बच्चों से पूछे बिना रिश्ता तय कैसे कर दें?’’
बैठक में आदित्य के मातापिता, उस की बड़ी बहन जाह्नवी, जीजा शिखर
मौजूद थे. वे सुबह ही दिल्ली से अपनी कार से मेरठ पहुंचे थे. आदित्य बैंगलुरु में जौब करता है. वह भी शुक्रवार की सुबह फ्लाइट पकड़ दिल्ली पहुंचा था. कल उस की दिल्ली से वापसी की फ्लाइट है. सिर्फ लड़की देखने के लिए उसे इतनी भागदौड़ करनी पड़ती है. इस से पहले वह होली में घर आया था तो मां ने आसपास के शहरों की लड़कियों को दिल्ली के मौल में मिलने बुला लिया था.
3-4 दिन यही दिखनेदिखाने का सिलसिला चला, मगर परिणाम शून्य. कई लड़कियों की शक्ल और फोटो का मिलान देख वह चौंक उठा था तो कई लड़कियां उसे भी रिजैक्ट कर चुकी हैं. अभी वह मन ही मन सोच रहा था कि यदि रितु ने मना कर दिया तो उस की बड़ी बेइज्जती हो जाएगी. अभी तक तो घर से बाहर ही देखनादिखाना होता था. किसी के घर जा कर हां या न सुनना बड़ा ही अजीब है.