मोहित ने गिफ्ट लिया और कहा कि मैं ने तो तुम्हारे लिए कुछ नहीं लिया है. मुझे ये चोंचलेबाजी पसंद नहीं है.
नवेली कुछ नहीं बोली. मगर उस रात मोहित ने नवेली को जी भर कर प्यार किया. नवेली का तनमन प्यार से भीग गया था.
अगली सुबह मोहित नवेली को बांहों में भरते हुए बोला, "ये गिफ्ट तो वो मर्द देते हैं, जो दब्बू होते हैं. मैं तो तुम्हें अपने बच्चों का तोहफा दूंगा, वह भी एक नहीं पूरे तीन. घर भराभरा सा लगना चाहिए."
नवेली इस से पहले कुछ बोलती, मोहित ने उस के होंठों पर उंगली रखते हुए कहा, "परिवार के निर्णय मैं लूंगा, तुम क्यों दिमाग पर जोर देती हो. तुम बस घर का और अपना ध्यान रखो."
नवेली को मोहित का ये रवैया पसंद भी था और नापसंद भी.
बचपन से नवेली ने अपने पापा को मम्मी से हर छोटीबड़ी बात पर दबते देखा था, इसलिए उसे मोहित का ये रूखापन ना जाने क्यों आकर्षित करता था. नवेली को लगता था कि अब उस की जिंदगी मोहित के प्यार के साए में महफूज है.
शाम को नवेली के मम्मीपापा का फोन आया था. नवेली की मम्मी राशि बोली, "बेटा, हनीमून के लिए कहां जा रहे हो?"
नवेली बोली, "मम्मी, मोहित ने अभी निर्णय नहीं लिया है."
राशि बोली, "तुम्हारी कोई इच्छा नही है?"
नवेली बोली, "अरे मम्मी, मैं तो बड़े आराम से हूं. मैं आप के और पापा द्वारा दिए गए स्पेस से बहुत बोर हो गई हूं."
राशि ने बिना कुछ बोले फोन रख दिया था.
अगले दिन मोहित ने नवेली से कहा, "नवेली, मुझे बिजनैस के सिलसिले में जरूरी काम से दुबई जाना होगा."