सादगी पसंद सुरेशजी नहीं चाहते थे कि शादियों में फुजूलखर्च किया जाए पर उन की सुनने को कोई तैयार ही नहीं था. उन की बेटी रोहिणी ने जब उन के सोच को उचित ठहराया तो उन्हें अपनी बेटी पर गर्व हो उठा.