सुजाता बोली, ‘‘तब, मुझे क्या करना चाहिए?’’
अतुल बोला, ‘‘मैं सारे पेपर्स तैयार करवा लेता हूं. इस के अतिरिक्त एक एग्रीमैंट भी तैयार कर लेता हूं. मेरा जितना भी बैंक बैलेंस और शेयर्स हैं उस का आधा तुम्हें दे रहा हूं. रेणु की कस्टडी भी तुम्हें दे रहा हूं क्योंकि बेटी मां के पास ज्यादा खुश रहेगी. तुम सारे पेपर्स पर साइन कर दो. जितना जल्दी हो जाए, अच्छा है क्योंकि जितनी बार हम वकील के यहां या कोर्ट जाएंगे, महंगा पड़ेगा. यहां वकील की फीस बहुत ज्यादा होती है. पेपर्स साइन कर तुम इंडिया जा सकती हो क्योंकि तब तक तुम्हारा वीजा वैलिड रहेगा. बाकी, सब मैं यहां देख लूंगा.’’
सुजाता बोली, ‘‘ठीक है, मुझे सबकुछ मंजूर है जिस में तुम्हारी खुशी है. तुम पर प्यार न तो थोपूंगी और न ही इस के लिए तुम से भीख मांगूगी.’’
अतुल बोला, ‘‘तो मैं वकील से मिल कर पेपर्स तैयार करा लेता हूं.’’
सुजाता बोली, ‘‘हां, करा लो. मगर मुझे तुम्हारा एक पैसा भी नहीं चाहिए. इंडिया जाने का अपना और रेणु का टिकट मैं खुद कटाऊंगी. मुझे या रेणु को जो कैश गिफ्ट मिलते थे, उन में से कुछ पैसे बचाए हैं. इस के अतिरिक्त पापा का दिया क्रैडिट कार्ड भी है. उस से मेरा काम हो जाएगा. हां, रेणु मेरी बेटी मेरे ही साथ रहेगी.’’
अतुल बोला, ‘‘मगर रेणु के लिए मैं कुछ देना चाहूंगा.’’
‘‘वे पैसे हमारी तरफ से अपनी नई अमेरिकन बीवी को गिफ्ट कर देना,’’ सुजाता ने कहा.
2 दिनों बाद अतुल ने सुजाता को तलाक से संबंधित पेपर्स दिए थे. सुजाता ने उन पेपर्स पर साइन कर अतुल को लौटा दिए थे. कुछ ही दिनों के बाद सुजाता को कोर्ट से भी एक नोटिस मिला था, जिसे उस ने तलाक पर अपनी सहमति के साथ वापस भेज दिया था.