अपने ही छोटे भाई की पत्नी के प्रति मन में पनपते अनुराग ने उन्हें एक अपराधभाव से भर दिया. वह चाह कर भी इस समय कविता से दूर नहीं जा सकते थे. लेकिन मन ही मन राघव ने निर्णय कर लिया था कि रंजन के आते ही वह उन दोनों के जीवन से कहीं दूर चले जाएंगे.
अचानक एक शाम काम करतेकरते कविता आंगन में फिसल कर गिर गई. राघव तुरंत उसे ले कर अस्पताल भागे पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी और कविता अपने बच्चे को खो चुकी थी. राघव ने जब रंजन को इस बारे में बता कर उसे लौट आने को कहा तो रंजन बोला, ‘‘भैया, जो होना था सो हो गया. इस वक्त तो मेरा आ पाना संभव नहीं, पर जल्दी आने की कोशिश करूंगा.’’
इस घटना के बाद तो कविता एकदम ही गुमसुम रहने लगी थी. इस दौरान राघव ने अपने दफ्तर से छुट्टी ले कर एक छोटे बच्चे की तरह कविता की देखभाल की.
कविता को यों मन ही मन घुटते देख, एक दिन मां ने उस से कहा, ‘‘कविता, मैं तुम्हारा दर्द समझती हूं, बेटा, पर इस का मतलब यह तो नहीं कि जीना छोड़ दिया जाए.’’
मां की बात सुन कर कविता ने सिसकते हुए कहा, ‘‘तो और क्या करूं, अब किस के लिए जीने की इच्छा रखूं मैं, रंजन के लिए, जिस ने यह खबर सुन कर भी आने से मना कर दिया...सोचा था बच्चे के आने पर सब ठीक हो जाएगा, पर...मां, रंजन अपने बड़े भाई जैसे क्यों नहीं हैं...’’ कहते हुए कविता मां के गले से लग गई.