अपनेआप के साथ रह कर, जो अकेलापन कभी अकेलापन नहीं लगा वही पारुल के साथ होने पर भी क्यों आज इतने बरसों बाद काट खाने को दौड़ रहा है? शायद इसलिए कि पारुल उस के साथ, उस के सामने होते हुए भी लगातार पीयूष से जुड़ी हुई है, उस के साथ और जुड़ाव का एहसास ही पल्लवी के अकेलेपन को लगातार बढ़ाता जा रहा था.
पल्लवी ने फिर प्रशांत को फोन लगाया. लेकिन अब की बार उस का फोन स्विच औफ मिला. झुंझला कर पल्लवी ने प्रशांत के औफिस में फोन लगाया. उस की पी.ए. को तो कम से कम पता ही होगा कि प्रशांत कहां हैं, किस होटल में ठहरे हैं. औफिस में जिस ने भी फोन उठाया झिझकते हुए बताया कि सर की पी.ए. तो सर के साथ ही मुंबई गई है.
पल्लवी सन्न रह गई. तो इसलिए प्रशांत फोन नहीं उठा रहे थे. रात में और सुबह से ही फोन का स्विच औफ होने का कारण भी यही है. मुंबई के बाद बैंगलुरु फिर हैदराबाद. एक से एक आलीशान होटल और... पल्लवी हर बार कहती कि घर में बच्चे तो हैं नहीं, मैं भी साथ चलती हूं तो प्रशांत बहाना बना देते कि मैं तो दिन भर काम में रहूंगा. रात में भी देर तक मीटिंग चलती रहेगी. तुम कहां तक मेरे पीछे दौड़ोगी? बेकार होटल के कमरे में बैठेबैठे बोर हो जाओगी.
सच ही तो है बीवी की जरूरत ही नहीं है. पी.ए. को साथ ले जाने में ही ज्यादा सुविधा है. दिन भर काम में मदद और रात में बिस्तर में सहूलत. अचानक पल्लवी की आंखों के सामने आपस में हंसीचुहल करते हुए खाना बनाते और काम करते पीयूष और पारुल के चित्र घूम गए. पहले जिस बात को सुन कर पल्लवी तुच्छता से हंस दी थी आज उसी चित्र की कल्पना कर के उसे ईर्ष्या हो रही थी.