नर्सरी में देखो तो पौधे कितने खिलेखिले रहते हैं. मगर गमलों में शिफ्ट करते ही मुरझने लगते हैं. बराबर खादपानी देती हूं, सीधी धूप से भी बचाती हूं, फिर भी पता नहीं क्यों मिट्टी बदलते ही पौधे कुछ दिन तो ठीक रहते हैं, लेकिन फिर धीरेधीरे जल जाते हैं,’’ मां अपने टैरेस गार्डन में उदास खड़ी बड़बड़ा रही थी. आज फिर उस का जतन से लगाया एक प्यारा पौधा मुरझ गया था.
खिड़की में खड़ी लक्षिता अपनी मां को देख रही थी. खुद वह भी तो इन गमलों के पौधों जैसी ही है. शादी से पहले मायके में कितनी खिलीखिली रहती थी. ससुराल जाते ही मुरझ गई. हर समय चहकने वाली लक्षिता शादी के 2 साल बाद ही अपना घर छोड़ कर मायके आ गई थी. नहींनहीं, यह कोई व्यक्तिगत, सामाजिक या कानूनी अलगाव नहीं था, बस लक्षिता विशाल और अपने रिश्ते को थोड़ा और समय देना चाह रही थी.
ऐसा नहीं था कि उस ने अपनी जड़ों को पराई जमीन में रोपने में कोई कसर छोड़ी हो. भरसक प्रयास किया था नई मिट्टी के मुताबिक ढलने का... लेकिन पता नहीं मिट्टी में ही कीड़े थे या फिर धूप इतनी तेज कि उस पर तनी विशाल के प्रेम वाली हरी नैट भी बेअसर हो गई. लक्षिता अपनी असफल शादी को याद कर भर आई आंखें पोंछने लगी.
‘न उम्र की सीमा हो, न जन्म का हो बंधन. जब प्यार करे कोई, तो देखे केवल मन...’ कितना झठ कहते है ये शायर लोग भी. कौन कहता है कि प्यार उम्र के फासले को पाट सकता है? यह तो वह खाई है जिसे लांघने की कोशिश करने वाले को अपने हाथपांव तुड़वाने ही पड़ते हैं. और यदि इस राह में जन्म का बंधन यानी जातिधर्म की चट्टान भी आ जाए तो फिर इन फासलों को पाटना किसी साधारण व्यक्ति के बस की बात तो नहीं हो सकती, लक्षिता मोबाइल की स्क्रीन पर लगी अपनी और विशाल की शादी की तसवीर को देख कर फीकी सी मुसकरा दी.