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‘‘अनु मैं करने या उन का ध्यान रखने को मना कब कर रहा हूं मैं तो बस इतना चाहता हूं कि अपने घर को हम अपने विवेक से, अपने अनुसार चलाएं... तुम तो अपना घर ही उन के अनुसार चलाती हो... मैं ने अनु को समझने की कोशिश की पर मेरी किसी भी बात पर ध्यान दिए बिना ही अनु तुनक कर दूसरे कमरे में सोने चली गई. मैं तो विचारशून्य ही हो गया था.

कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं. खैर, इसी ऊहापोह के मध्य हमारी गृहस्थी रेंग रही थी. तुम अब 8 साल की नाजुक उम्र में पहुंच चुकी थी... तुम्हें वह दिन याद है न जब मैं ने जबरदस्ती तुम्हें अपने दोस्त नवीन के यहां रात्रि में उस की बेटी सायशा के साथ भेज दिया था क्योंकि मुझे पता था कि अनु देर रात्रि नशे की हालत में घर आएगी और मैं नहीं चाहता था कि तुम अपनी मां को उस हालत में देखो और हमारी बहस की साक्षी बनो.’’

‘‘आप को कैसे पता था कि मां उस हालत में आएगी?’’ पीहू अचानक बोल पड़ी.

‘‘क्योंकि अब तक मैं तुम्हारी मौसी और नानी की देर रात तक चलने वाली पार्टियों का मतलब बहुत अच्छी तरह समझ चुका था और उस दिन शाम को जब मैं बैंक से निकल रहा था तो अनु का फोन आया था कि मैं कालेज से सीधी दीदी के यहां आ गई हूं. देर से घर आऊंगी. दीदी के यहां एक पार्टी है. तुम पीहू को देख लेना. उस दिन देर रात तुम्हारी मम्मी एकदम आधुनिक बदनदिखाऊ ड्रैस पहने नशे में गिरतीपड़ती घर आई थी. किसी तरह उसे सुलाया था मैं ने. जब दूसरे दिन रात के बारे में बात की तो बोली कि देखो वे लोग बहुत मौडर्न हैं. तुम्हारी तरह दकियानूसी सोच वाले नहीं हैं. पार्टियांशार्टियां और ऐसी ड्रैसेज यह तो मौडर्न कल्चर है पर तुम नहीं समझगे. कल क्या पार्टी थी. मजा ही आ गया. मैं तो कहती हूं तुम भी चला करो, ‘‘अनु को अपने बीते कल पर कोई अफसोस नहीं था यह देख कर मैं हैरान था.

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